Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 52
________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 16 ] [ 185 ण कुव्वती महावीरे, अणुपुवकडं रयं / रयसा संमुहीभूता, कम्मं हेच्चाण जं मयं ॥२३॥जं मयं सव्वसाहूणं, तं मयं सल्लगत्तणं / साहइत्ताण तं तिन्ना, देवा वा अर्भावसु ते // 24 // अभवितु पुरा वी(धी)स, यागमिस्सावि सुव्वता / दुन्निबोहस्स मग्गस्स, अंतं पाउकरा तिन्ने // 25 // तिबेमि / (गाथागं 643) ॥इति पञ्चदशमध्ययनम् // 15 // // अथ षोडशं श्रीगाथाध्ययनम् // अहाह भगवं-एवं से दंते दविए वोसट्टकाएत्ति वच्चे माहणेत्ति वा 1 समणेत्ति वा 2 भिक्खूत्ति वा 3 णिग्गंथेत्ति वा 4 पडियाह-भंते ! कहं नु दंते दविए वोसट्टकाएत्ति वच्चे माहणेत्ति वा समणेत्ति वा भिक्वृत्ति वा णिग्गंथेत्ति वा ? तं नो ब्रूहि महामुणी ! // इतिविरिए सव्वपावकम्मेहिं पिज्जदोसकलह० अन्भवखाण० पेसुन्न. परपरिवाय. अरतिरति० मायामोस० मिच्छादसणसल्लविरए समिए सहिए सया जए णो कुज्झे णो माणी माहणेत्ति वच्चे 1 // एत्थवि समणे अणिस्सिए अणियाणे श्रादाणं च अतिवायं च मुसावायं च बहिद्धं च कोहं च माणं च मायं च लोहं च पिज्जं च दोसं च इच्चेव जयो जयो श्रादाणं अप्पणो पदोसहेऊ तो तयो यादाणातो पुब्वं पडिविरते पाणाइवायायो सियादते दविए वोसट्टकाए समणेत्ति वच्च 2 // एत्थवि भिक्खू अणुन्नए विणीए नामए दंते दविए वोसट्टकाए संविधुणीय विरूवरूवे परीसहोवसग्गे अज्झप्पजोगसुद्धादाणे उवट्ठिए ठियप्पा संखाए परदत्तभोई भिक्खुत्ति वच्चे 3 // एत्थवि णिग्गंथे एगे एगविऊ बुद्धे संछिन्नसोए सुसंजते सुसमिते सुसामाइए श्रायवायपत्ते विऊ दुहयोवि सोयपलिच्छिन्ने णो प्रयासकारलाभट्ठी धम्मट्ठी धम्मविऊ णियागपडिबन्ने समि(म)यं चरे दंते दविए वोसट्टकाए निग्गंथेत्ति वच्चे 4 // से एवमेव जाणह जमहं भयंतारो // तिबेमि / . // इति षोडशममध्ययनम् // 16 // प्रथमः श्रुतस्कन्धः समाप्तः // 1 //

Loading...

Page Navigation
1 ... 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122