Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 58
________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 1] [ 161 वा णीलेति वा लोहियहालिद्दे जाव सुकिल्लेति वा, सुन्भिगंधेति वा दुन्भिगंधेति वा, तितेति वा कड्डएति वा कसाएति वा अंबिलेति वा जाव महुरेति वा, कक्खडेति वा मउएति वा गुरुएति वा लहुएति वा सिएति वा उसिणेति वा निद्रेति वा लुबखेति वा, 5 / एवं असंते असंविजमाणे जेसिं तं सुयपखायं भवति-अन्नो जीवो अन्नं सरीरं, तम्हा ते णो एवं उवलभंति से जहाणामए केइ पुरिसे कोसीयो असिं अभिनिवट्टित्ता गां उवदंसेज्जा अयमाउसो ! असी अयं कोसी, एवमेव णस्थि केइ पुरिसे अभिनिव्वट्टित्ता णं उवदंसेइ (उवदंसेत्तारो) अयमाउसो! याया इयं सरीरं 6 / से जहाणामए केइ पुरिसे मुजायो इसियं अभिनिव्वट्टित्ता णं उवदंसजा अयमाउसो! मुजे इयं इसियं, एवमेव नत्थि केइ पुरिसे उवदंसेत्तारो अयमारसो ! थाया इयं सरीरं 7 से जहाणामए केइ पुरिसे मंसायो अढि अभिनिवट्टित्ता गां उवदंसेज्जा अयमाउसो। मसे अयं अट्ठी, एवमेव नत्थि केइ पुरिसे उवदंसेत्तारो अयमाउसो! याया इयं सरीरं 8 / से जहाणामए केइ पुरिसे करयलायो ग्रामलकं अभिनिव्वट्टित्ता गां उवदंसेज्जा अयमाउसो ! करतले अयं श्रामलए, एवमेव णत्थि केइ पुरिसे उवदंसेत्तारो अयमाउसो ! याया इयं सरीरं / से जहाणामए केइ पुरिसे दहियो नवनीयं अभिनिव्वट्टित्ताणं उवदंसेजा अयमाउसो ! नवनीयं अयं तु दही, एवमेव णत्थि केइ पुरिसे जाव सरीरं 1 / से जहाणामए केइ पुरिसे तिलेहितो तिल्लं अभिनिव्वट्टित्ता णं उवदंसेजा श्रयमाउसो! तेल अयं पिनाए, एवमेव जाव सरीरं 10 से जहाणामए केइ पुरिसे इक्खूतो खोतरसं अभिनिव्वट्टित्ता णं उवदंसेजा अयमाउसो / खोतरसे अयं छोए, एवमेव जाव सरीरं 11 / से जहाणामए केइ पुरिसे परणीतो अग्गि अभिनियट्टित्ताणं उवदंसेजा श्रयमाउसो! अरणी अयं अग्गी, एवमेव जाव सरीरं 12 / एवं असते असंविजमाणे जेसिं तं सुयक्खायं भवति, तंजहा अन्नो जीवो अन्नं सरीरं / तम्हा ते मिन्छ। 13 // से हंता तं हणह खणह छणह

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