Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 14 ] [ 181 धम्मा / ते सबगोत्तावगया महेसी, उच्चं अगोतं च गतिं वयंति // 16 // भिक्खू मुयच्चे तह(सूय)दिट्ठधम्मे, गामं च णगरं च अणुप्पविस्सा / से एसणं जाणमणेसणं च, अन्नस्स पाणस्स अणाणुगिद्धे // 17 // परति रतिं च अभिभूय भिक्खू, बहूजणे वा तह एगचारी / एगंतमोणेण विया. गरेजा, एगस्स जंतो गतिरागती य // 18 // सयं समेचा अदुवावि सोचा, भासेज धम्म हिययं पयाणं / जे गरहिया सणियाणप्पयोगा, ण ताणि सेवंति सुधीरधम्मा // 11 // केसिंचि तक्काइ अबुझ भावं, खुद्दपि गच्छेज असदहाणे / अाउस्स कालाइयारं वघाए, लद्धाणुमाणे य परेसु अठे // 20 // कम्मं च छंदं च विगिंच धीरे, विणइज उ सव्वयो (सुव्ययो) पाव(प्राय)भावं / रूवेहिँ लुप्पंति भयावहेहि, विज्ज गहाया तसथावरेहिं // 21 // न पूयणं चेव सिलोयकामी, पियमप्पियं कस्सइ णो करेजा। सव्वे अणठे परिवजयंते, अणाउले या यकसाइ भिक्खू // 22 // याहतहीयं समुपेहमाणे सव्वेहिं पाणेहिं णिहाय दंडं / णो जीवियं णो मरणाहिकंखी, मेहावि वलयविष्यमुक्के (परिव्वएजा वलयाविमुक्के) // 23 // ... तिमि / (गाथाग्रं-५९१) इति त्रयोदशमध्ययनम् // 13 // // अथ ग्रन्थनामकं चतुर्दशमध्ययनम् // गंथं विहाय इह सिक्खमाणो, उट्ठाय सुबंभचेरं वसेजा। ग्रोवायकारी विणयं सुसिवखे, जे छेय विप्पमायं न कुजा // 1 // जहा दियापोतमपत्तजातं, सावासगा पविउं मन्नमाणं / तमचाइयं तरुणमपत्तजातं, ढंकाइ अव्वत्तगम हरेजा // 2 // एवं तु सेहंपि अपुट्ठधम्मं, निस्सारियं वुसिमं मनः माणा / दियस्स हायं व अपत्तजायं, हरिंसु णं पावधम्मा अणेगे // 3 // योसाणमिच्छे मणुए समाहिं, अणोसिए णंतकरिति णचा / योभासमाणे दवियस्त वित्तं, ण गिकसे बहिया यासुपन्नो // 4 // जे ठाणयो य सयणा
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