Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 176 ] __ [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः छक्काय पाहिया / एतावए (इत्ताव एव जीवकाए, नावरे विजती काए (क) (णावरे कोइ विजई) // 8 // सव्वाहि अणुजुत्तीहिं, मतिमं पडिलेहिया। सव्वे अवकंतदुक्खा य, अतो सव्वे न हिंसया // 6 // एवं खुणाणिणो सारं, जं न हिंसति कंचण / अहिंसा समयं चेव, एतावंतं विजाणिया // 10 // उड्ढे अहे य तिरियं, जे केइ तसथावरा / सव्वत्थ विरतिं विज्जा, संति निव्वाणमाहियं // 11 // पभू दोसे निराकिच्चा (निरिविखत्ता), ण विरुज्झेज केणई / मणसा वयसा चेव, कायसा चेव अंतसो // 12 // संवुडे से महापन्ने, धीरे दत्तेसणं चरे / एसणासमिए णिच्चं, वजयंते अणेसणं // 13 // भूयाइं च समारंभ, तमुदिस्सा (भूयाई समारंभ, समुद्दिस्सा) य जंकडं / तारिसं तु ण गिराहेजा, अन्नपाणं सुसंजए // 14 // पूईकम्म न सेविजा, एस धम्मे बुसीमयो / ज किंचि अभिकखेज्जा, सव्वसो तं न कप्पए // 15 // हणंतं णाणुजाणेजा, पायगुत्ते जिइंदिए। ठाणाई संति सडीणं, गामेसु नगरेसु वा // 16 // तहा गिरं समारब्भ, अत्थि पुराणंति णो वए / ग्रहवा णत्थि पुराणंति, एवमेयं महन्भयं // 17 // दाणट्ठया य जे पाणा, हम्मति तसथावरा / तेसिं सारक्खणट्टाए, तम्हा अस्थिति णो वए // 18 // जेमिं तं उवकप्पंति, अन्नपाणं तहाविहं / तेसिं लाभंतरायंति, तम्हा णस्थित्ति णो वए // 16 // जे य दाणं पसंसंति, वहमिच्छति पाणिणं / जे य णं पडिसेहंति, वित्तिच्छेयं करंति ते // 20 // दुह योवि ते ण भासंति, अस्थि वा नस्थि वा पुणो / श्रायं रयस्स हेच्चा णं, निव्वाणं पाउणंति ते // 21 // निव्वाणं परमं बुद्धा, णवखत्ताण व चंदिमा। तम्हा सदा जए दंते, निव्वाणं संधए मुणी // 22 // वुममाणाण पाणाणं, किच्छताण सकम्मुणा / श्राघाति साहु तं दीवं, पतिठेसा पवुच्चई // 23 // श्रायगुत्ते सया दंते, छिन्नसोए श्रणासवे / जे धम्मं सुद्धमक्खाति, पडिपुन्नमणेलिसं // 24 // तमेव अविजाणंता, अबुद्धा बुद्धमाणिणो / बुद्धा मोत्ति य मन्नंता,
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