Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 174 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : प्रथमो विभागः एगंतसमाहिमाहु / बुद्धे समाहीय रते विवेगे, पाणातिवाता विरते ठियप्पा (ठियचि) // 6 // सव्वं जगं तू समयाणुपेही, पियमप्पियं कस्सइ णो करेजा। उट्ठाय दीणो य पुणो विसन्नो, संप्यणां चेव सिलोयकामी // 7 / / श्राहा. कडं चेव निकाममीणे, नियामचारी य विसरणमेसी / इत्थीसु सत्ते य पुढो य बाले, परिग्गहं चेव पकुव्वमाणे // 8 // वेराणुगिद्धे (यारंभसत्तो णिचयं करेति, इयो चुते स इह(से दुह)मट्ठदुग्गं। तम्हा उ मेधावि समिक्ख धम्म, चरे मुणी सब्वउ विप्पमुक्के // 1 // श्रायं ण कुजा इह जीवियट्ठी, अस. जमाणो य परिव्वएजा / णिसम्मभासी य विणीय गिद्धिं, हिंसन्नियं वा. ण कहं करेजा // 10 // श्राहाकडं वा ण णिकामएज्जा, णिकामयंते य ण संथवेजा / धुगो उरालं अणुवेहमाणे, विच्चाण सोयं अणवेक्खमाणो // 11 // एगत्तमेयं श्रभिपत्थएजा, एवं पोलखो न मुसंति पासं / एसप्पमोक्खो अमुसे वरेवि, अकोहणे सञ्चरते तवस्सी // 12 // इत्थीसु या पारय मेहुणायो, परिग्गहं चेव अकुबमाणे / उच्चावएसु विसएसु ताई, निस्संसयं भिक्खु समाहिपत्ते // 13 // अरइं रई च अभिभूय भिक्खू, तणाइफासं तह सीयफासं / उराहं च दंसं चाहियासएजा, सुभि व दुभि व तितिक्खएज्जा // 14 // गुत्तो वईए य समाहिपत्तो, लेसं समाहर्ट्स परिवएजा। गिहं न छाए णवि छायएजा, संमिस्सभावं पयहे पयासु // 15 // जे केइ लोगंमि उ अकिरियथाया, अन्नेण पुट्ठा धुयमादिसति / श्रारंभसत्ता गढिता य लोए, धम्म ण जागांति विमुक्खहेउं // 16 // पुढो य छंदा इह माणवा उ, किरियाकिरीयं च पुढो य वायं / जायस्स बालस्स पकुव देहं (जायाए बालस्स पगभणाए), पवडती वेरमसंजतस्स // 17 // श्राउवखयं चेव अबुज्झमाणे, ममाति से साहसकारि मंदे / अहो य रायो परितप्पमाणे, अटेसु मूढे अजरामरेव्व // 18 // जहाहि वित्तं पसवो य सव्वं, जे बंधवा जे य पिया य मित्ता / लालप्पती सेऽवि य (गंधमुति)
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