Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 39
________________ 172 ] [ श्रीमदागमसुघासिन्धुः :: प्रथमो विभागः यणाणि या / धूणादाणाई लोगंसि, तं विज्जं परिजाणिया // 11 // घोयणं रयणं चेव, बत्थीकम्मं विरेयणं / वमणंजण पलीमथं, तं विज्ज परिजाणिया // 12 // गंधमल्लमिणाणं च, दंतपक्खालणं तहा। परिग्गहित्थिकम्मं च, तं विज्जं परिजाणिया // 13 // उद्देसियं कीयगडं, पामिच्चं चेव पाहडं / पूयं श्रणेसणिज्जं च, तं विज्जं परिजाणिया // 14 // श्रासूणिमक्खिरागं च, गिद्धवघायकम्मगं / उच्छोलणं च कक्कं च, तं विज्जं परिजाणिया // 15 // संपसारी कयकिरिए, पसिणायतणाणि य / सागारियं च पिंडं च, तं विज्जं परिजाणिया // 16 // अट्ठावयं न सिक्खिज्जा, वेहाईयं च णो वए / हत्थकम्मं विवायं च, त विज्जं परिजाणिया // 17 // पाणहायो य छत्तं च, णालीयं वालवीयणं / परकिरियं अन्नमन्नं च, तं विज्जं परिजाणिया // 18 // उच्चारं पासवणं, हरिएसु ण करे मुणी / वियडेण वावि साहट्ट, णायमेजा(वमज्जे) कयाइवि // 11 // परमत्ते अन्नपाणं, ण भुजेज कयाइवि / परवत्थं अचेलोऽवि, तं विज्जं परिजाणिया // 20 // श्रासंदी पलियके य, णिसिज्जं च गिहतरे। संपुच्छणं सरणं वा, तं विज्जं परिजाणिया // 21 // जसं कित्तिं सलोयं च, जा य वंदणप्यणा / सब्बलोयंसि जे कामा, तं विज्जं परिजाणिया // 22 // जेणेहं णिव्वहे भिक्खू, अन्नपाणं तहाविहं / अणुप्पयाणमन्नेसिं, तं विज्ज परिजाणिया // 23 // एवं उदाहु निग्गंथे, महावीरे महामुणी / अणंतनाणदंसी से, धम्मं देसितवं सुतं // 24 // भासमाणो न भासेजा, णेव वंफेज मम्मयं / मातिट्टाणं विवज्जेज्जा, अणुचिंतिय वियागरे // 25 // तत्थिमा तइया भासा, जं वदित्ताऽणुतप्पती / जं छन्नं तं न वत्तव्वं, एसा बाणा णियंठिया // 26 // होलावायं महीवायं, गोयावायं च नो वदे / तुर्म तुमति अमणुन्नं, सब्यसो तं ण बत्तए // 27 // अकुसीले सया भिक्खू, णेव संसग्गियं भए। सुहरूवा तत्थुवस्मग्गा, पडिबुज्झेज ते विऊ // 28 //

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