Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 27
________________ 160 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः सीहलिपासगं च प्राणाहि / बादंसगं च पयच्छाहि, दंतपवखान / पवेप्ताहि // 11 // पूयफलं तंबोलयं, सूईसुत्तगं च जाणाहि / कोसं च मोवमेहाए, सुप्पुक्खलगं च खारगालणं च // 12 // चंदालगं च करगं च, वचचरं च पाउसो ! खणाहि / सरपाययं च जायाए, गोरहगं च सामणेरार // 13 // घडिगं च सडिडिमयं च, चेलगोलं कुमारभूयाए / वासं समभिवावराणं, श्रावसहं च जाण भत्तं च // 14 // श्रासंदियं च नवसुत्तं, पाउल्लाइं संकमट्ठाए / अदु पुत्तदोहलट्ठाए, ग्राणप्पा हवंति दासा वा // 15 // जाए फले समुप्पन्ने, गेराहसु वा गां ग्रहवा जहाहि / अहं पुत्तयोसिणो एगे, भारवहा हवंति उट्टा वा // 16 ॥रायोवि उठ्ठिया संता, दारगं च संवंति धाई वा / सुहिरामणा वि ते संता, वत्थथोवा हवंति हंसा वा // 17 // एवं बहुहिं कयपुर्व, भोगत्थाए जेऽभियावन्ना / दासे मिइव पेसे वा, पसुभूतेव से ण वा केई // 18 // एवं खु तासु विनप्पं, संथवं संवासं च वज्जेजा / तजातिया इमे कामा, वजकरा य एवमक्खाए।। 16 // एयं भयं ण सेयाय, इइ से अप्पगं निरुभित्ता / णो इत्थिं णो पसु भिक्खू , णो सयं पाणिणा णिलिज्जेजा // 20 // सुविसुद्धलेसे मेहावी, परकिरियं च वजए नाणी / मणसा वयसा कायेगां, सव्वफाससहे अणगारे // 21 // इच्चेवमाहु से वीरे, धुश्ररए धुअमोहे (धुराजमग्गे) से भिवखू / तम्हा अज्झत्थविसुद्धे, सुविमुक्के (विहरे) ग्रामोवखाए परिव्वएज्जा सि // 22 // तिबेमि // (गाथा 301) // इति चतुर्थाध्ययने द्वितीयोद्देशकः // 4-2 // इति चतुर्थाध्ययनम् 4 //

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