Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 166 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः अचिमाली // 13 // सुदंसणरसेव जसो गिरिस्स, पवुचई महतो पव्वयस्स / एतोवमे समणे नायपुत्ते, जातीजसोदंसणनाणसीले // 14 // गिरीवरे वा निसहाऽऽययाणं, स्यए व सेट्ठे वलयायताणं / तोवमे से जगभूइपन्ने, मुणीण मज्झे तमुदाहु पन्ने // 15 // अणुत्तरं धम्ममुईरइत्ता, अणुत्तरं झाणवरं मियाइ / सुसुक्कसुवकं अपगंडसुवकं, संखिंदुएगंतवदातसुवर्क // 16 // अणुत्तरग्गं परमं महेसी, असेसकम्मं स विसोहइत्ता / सिद्धि गति (गते) साइमणंतपत्ते, नाणेण सीलेण य दंसणेण // 17 // रुखेसु णाते जह सामली वा, जस्सिं रति वेययती सुवन्ना / वणेसु वा णंदणमाहु सेट्ठं, नाणेण सीलेण य भूतिपन्ने // 18 // थणियं व सहाण अणुत्तरे उ, चंदो व ताराण महाणुभावे / गंधेसु वा चंदणमाहु सेट्ट, एवं मुणीणं अपडिन्नमाहु // 16 // जहा सयंभू उदहीण सेठे, नागेसु वा धरणिंदमाहु सेठे / खोयोदए वा रस वेजयंते, तवोवहाणे मुणिवेजयते // 20 // हत्थीसु एरावणमाहु णाए, सीहो मिगाणं सलिलाण गंगा / पाखीसु वा गरुले वेणुदेवो, निव्वाणवादीणिह णायपुत्ते // 21 // जोहेसु णाए जह वीससेणे, पुप्फेसु वा जह अरविंदमाहु / खत्तीण सेठे जह दंतवक्के, इसीण सेठे तह वद्धमाणे / / 22 // दाणाण सेटठं अभयप्पयाणं, सच्चेसु वा अणवज्जं वयंति / तवेसु वा उत्तम बंभचेरं, लोगुतमे समणे नायपुत्ते // 23 // ठिईण सेट्ठा लवसत्तमा वा, सभा सुहम्मा व सभाण सेट्ठा। निव्वाणसेट्ठा जह सव्वधम्मा, ण णायपुत्ता परमत्थि नाणी // 24 // पुढोवमे धुणइ विगयगेही, न सरिणहिं कुव्वति श्रासुपन्ने / तरिउं समुद्द व महाभवोघं, अभयंकरे वीर अणंतचक्खू // 25 // कोहं च माणं च तहेव मायं, लोभं चउत्थं अज्झत्थदोसा। एग्राणि वंता अरहा महेसी, ण कुवई पाव ण कारवेइ // 26 // किरियाकिरियं वेणइयाणुवायं, अरणाणियाणं पडियच्च ठाणं / से सव्ववायं इति वेयइत्ता, उवट्ठिए संजम
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