Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 168 ] . [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : प्रथमो विभागः गम्भाई मिज्जति बुयाबुयाणा, णरा परे पंचसिहा कुमारा / जुवाणगा मझिम थेरगा (मझिम पोरसा) य, चयंति ते पाउखए पलीणा // 10 // संबुज्झहा जंतवो! माणुसत्तं, दद्रु भयं बालिसेणं अलंभो / एगंतदुक्खे जरिए व लोए, सकम्मुणा विप्परियासुवेइ // 11 // इहेग मूढा पवयंति मोक्खं, याहारसंपजणवजणेणं (याहारसपंचयवजणेणं, आहारयो पंचकवजणेणं)। एगे य सीयोदगसेवणेणं, हुएण एगे पवयंति मोक्खं // 12 // पायोसिणाणादिसु णत्थि मोक्खो, खारस्स लोणस्स यणासएणं / ते मजमंसं लसणं च भोचा, अन्नत्थ वासं परिकप्पयंति // 13 // उदगेण जे सिद्धिमुदाहरंति, सायं च पायं उदगं फुसंता। उदगस्स फासेण सिया य सिद्धी, सिझिसु पाणा बहवे दगंसि // 14 // मच्छा य कुम्मा य सिरीसिवा य, मग्गू य उट्ठा(ट्टा) दगरवखसा य / अट्ठाणमेयं कुसला वयंति, उदगेण जे सिद्धिमुदाहरंति // 15 // उदयं जइ कम्ममलं हरेजा, एवं सुहं इच्छामित्तमेव / अंधं व णेयारमणुस्सरित्ता, पाणाणि चेवं विणिहंति मंदा // 16 // पावाई कम्माई पकुवतो हि, सियोदगं तू जइ तं हरिजा / सिझिसु एगे दगसत्तघाती, मुसं वयंते जलसिद्धिमाहु // 17 // हुतेण जे सिद्धिमुदाहरंति, सायं च पायं अगणिं फुसंता / एवं सिया सिद्धि हवेज तम्हा, अगणिं फुसंताण कुकम्मिणंपि // 18 // अपरिक्ख दिळं ण हु एव सिद्धी, एहिति ते घायमबुज्झमाणा / भूएहिं जाणं पडिलेह सातं, विज्ज गहायं तसथावरेहिं // 11 // थणंति लुप्पंति तसंति कम्मी, पुढो जगा परिसंखाय भिक्खू / तम्हा विऊ विरतो पायगुत्ते, दद्रुतसे या पडिसंहरेजा // 20 // जे धम्मलद्धं विणिहाय भुजे, वियडेण साहटु य जे सिणाई / जे धोवती लूसयतीव वत्थं, अहाहु से णागणियस्स दूरे // 21 // कम्म परिनाय दगंसि धीरे, वियडेण जीविज य श्रादिमोक्खं / से बीयकंदाइ अभुजमाणो, विरते सिणाणाइसु इत्थियासु // 22 // जे मायरं च पियरं च हिना,
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