Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 36
________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 8 ] [ 166 गारं तहा पुत्तपसु धणं च / कुलाई जे धावइ साउगाई, ग्रहाहु से सामणियस्स दूरे // 23 / / कुलाई जे धावइ साउगाई, श्राघाति धम्मं उदराणुगिद्धे / अहाहु से पायरियाण सयंसे, जे लावएजा असणस्स हेऊ // 24 // णि खम्म दीणे परभोयणंमि, मुहमंगलीए उदराणुगिद्धे / नीवारगिद्धेव महावराहे, अदूरए एहिइ घातमेव // 25 // अन्नस्स पाणस्सिहलोइयस्स, अणुप्पियं भासति सेवमाणे / पासत्थयं चेव कुसीलयं च, निस्सारए. होइ जहा पुलाए / / 26 // अगणातपिंडेणहियासएजा, णो पूया तवसा. यावहेजा / सहहिं स्वेहिं असन्जमाणां, सब्वेहिं कामेहिं विणीय गेहिं // 27 // सव्वाइं संगाई अइच धीरे, सव्वाइं दुक्खाई तितिक्खमाणे / अखिले अगिद्धे अणिएयवारी, अभयंकरे भिक्खु अणाविलप्पा // 28 // भारस्स जत्ता (जाता) मुणि भुजएन्जा, कंखेज पावस्स विवेग भिक्खू / दुक्खेण पुढे धुयमाइएजा, संगामसीसे व परं दमेजा // 21 // अवि हम्ममाणे फलगावतट्ठी, समागमं कंखति अंतकस्स / णिधूय कम्मं ण पवंचुवेइ, अक्खक्खए वा सगडं तिबेमि // 30 // (गाथाग्रं 402) // इति सप्तममध्ययनम् // 7 // ॥अथ अष्टमं श्रीवीर्याध्ययनम् // - दुहा वेयं सुयक्खायं, वीरियंति पवुचई / किं नु वीरस्स वीरतं, कह चेयं पवुचई ? / / 1 // कम्ममेगे पवेदेति, अकम्मं वावि सुब्वया / एतेहिं दोहि ठाणेहिं, जेहिं दीसति मचिया // 2 // पमायं कम्ममाहंसु, अप्पमाय तहावरं / तभावादेसयो वावि, बालं पंडियमेव वा // 3 // सत्थमेगे तु सिक्खंता (सिक्खंति), अतिवायाय पाणिणं / एगे मंते अहिज्जंति, पाणभूयविहेडिणो / / 4 / / माइणो कटु माया य, कामभोगे समारभे (प्रारंभाय तिवट्टइ)। ता छेत्ता पगभित्ता, श्रायसायाणुगामिणो // 5 // मणसा

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