Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 25
________________ 158 ] [श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः दछ एगता होति। गिद्धा सत्ता कामेहि, रक्खणपोसणे मणुस्सोऽसि // 14 // समणंपि दठ्ठदासीणं (समणं द णु दासीणं) तत्थवि ताव एगे कुप्पंति / अदुवा भोयणेहिं णत्थेहिं, इत्थीदोसं संकिणो होति // 15 // कुव्वंति संथवं ताहिं, पन्भट्ठा समाहिजोगेहिं / तम्हा समणा ण समेति, पायहियाए सरिणसेज्जायो // 16 // बहवे गिहाई अवहटु, मिस्सी. भावं पत्थुया (पराणता) य एगे / धुवमग्गमेव पवयंति, वायावीरियं कुसीलाणं // 17 // सुद्धं रखति परिसाए, यह रहस्संमि दुक्कडं करेंति / जाणंति य णं तहाविहा, माइल्ले महासढेऽयंति // 18 // सयं दुकडं च न वदति, थाइट्ठोवि पकत्थति बाले / वेयाणुवीइ मा कासी, चोइज्जतो गिलाइ से भुजो // 11 // श्रोसियावि इत्थिपोसेसु, पुरिसा इत्थिवेयखेदन्ना। पराणासमन्निता वेगे, नारीणं वसं उवकसति // 20 // अवि हत्थपादछेदाए, अदुवा वद्धमंसउक्कते / अवि तेयसाभितावणाणि, तच्छियखारसिंचणाई च // 21 // अदु कराणणालच्छेदं, कंठच्छेदणं तितिवखंती / इति इत्थ पावसंतत्ता, नय बिति पुणो न काहिंति // 22 // सुंतमेतमेवमेगेसिं, इत्थीवेदेति हु सुयक्खायं / एवंपि ता वदित्ताणं, अदुवा कम्मुणा अवकरेंति // 23 // अन्नं मणेण चिंतेति, वाया अन्नं च कम्मणा यन्नं / तम्हा ण सदह भिक्खू, बहुमायायो इत्थियो णचा // 24 // जुवती समणं ब्रूया, विचित्तऽलंकारवत्थगाणि परिहित्ता / विरता चरिस्तहं रुवखं (मौन), धम्ममाइवखणे भयंतारो॥२४॥अदु साविया पवाएणं, ग्रहमंसि साहम्मिणीय समणाणं / जउकुभे जहा उपजोई, संघासे विदू विसीएज्जा // 26 // जतुकुभे जोइउवगूढे, बासुऽभितत्ते णासमुवयाइ / एवित्थियाहिं श्रणगारा, संवासेण णासमुवयंति // 27 // कुव्वंति पावगं कम्म, पुट्ठा वेगेवमाहिंसु / नोऽहं करेमि पावंति, अंकसाइणी ममेसत्ति // 28 // बालस्स मंदयं बीयं, जंत्र कडं अवजाणई भुजो / दुगणं करेइ से पावं, पूयणकामो विसन्नेसी

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