Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 23
________________ 156 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः एते पुत्वं महापुरिसा, याहिता इह संमता। भोचा बीयोदगं सिद्धा, इति मेयमणुस्सुयं // 4 // तत्थ मंदा विसीयंति. वाहन्छिन्ना व गद्दभा। पिट्ठतो परिसप्पंति, पिट्ठसप्पी य संभमे // 5 // इहमेगे उ भासंति (मन्नति), सातं सातेण विज्जती / जे तत्थ पारियं मग्गं, परमं व समाहिए (यं) // 6 // मा एवं अवमन्नंता, अप्पेणं लुपहा बहुं / एतस्स (उ) अमोवखाए, अयोहारिव्व जूरह // 7 // पाणाइवाते वदता, मुसावादे असंजता / दिन्नादागो वटता, मेहुणे य परिग्गहे // 8 // एवमेगे उ पासत्था, पन्नवंति अणारिया / इत्थीवसं गया बाला, जिणसामणपरम्मुहा // 1 // जहा गंडं पिलागं वा, परिपीलेज मुहुत्तगं / एवं विनवणित्थीसु, दोसो तत्थ कयो सिया ? // 10 // जहा मंधादए नाम, थिमिग्रं भुजती दगं / एवं विनवणित्थीसु, दोसो तत्थ कयो सिया ? // 11 // जहा विहंगमा पिंगा, थिमिग्रं भुजती दगं / एवं विनवणित्थीसु, दोसो तत्थ कयो सिया ! // 12 // एवमेगे उ पासस्था, मिच्छादिट्ठी अणारिया / अज्झोववन्ना कामेहिं, पूयणा इव तरुणए // 13 // अण्णागयमपस्संता, पञ्चुप्पन्नगवेसगा / ते पच्छा परितप्पंति, खीगो ग्राउंमि जोव्वणे // 14 // जेहिं काले परिक्कतं, न पच्छा परितप्पए / ते धीरा बंधणुम्मुक्का, नारखंति जीविग्रं // 15 // जहा नई वेयरणी, दुत्तरा इह संमता / एवं लोगंसि नारीयो, दुरुत्तरा अमईमया // 16 // जेहिं नारीण संजोगा, पूयणा पिट्ठतो कता / सव्वमेयं निराकिच्चा, ते ठिया सुसमाहिए // 17 // एते योघं तरिस्संति, समुद्द ववहारिणो / जत्थ पाणा विसन्नासि, किच्चंती सयकम्मुणा / / 18 // तं च भिवखू परिण्णाय, सुब्बते समिते चरे / मुसावायं च वजिन्जा अदिनादाणं च वोसिरे // 11 // उड्डमहे तिरियं वा, जे केई तसथावरा / सव्वत्थ विरतिं कुजा, संति निव्वाण माहियं .20 // इमं च धम्ममादाय, कासवेण पवेदितं / कुजा भिक्खू गिलाणस्प, अगिलाए समाहिए // 21 // संखाय पेसलं धम्म,

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