Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 22
________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 3 ] [ 155 पिंडवाय गिलाणस्स, जं सारेह दलाह य॥१॥ एवं तुब्भे सरागत्था, अन्नमन्त्रमणुवसा। नट्ठसप्पहसम्भावा, संसारस्स अपारगा // 10 // ग्रह ते परिभासेजा, भिवू मोखविसारए / एवं तुम्भे पभामंता, दुपवखं चेव सेवह // 11 // तुझे भुजह पाएनु, गिलाणो अभिहडंमि या / तं च चीयोदगं भोचा, तमुदिस्मादि जं कडं // 12 // लित्ता तिव्वामितावेणं, उझिया अलमाहिया / नातिकंडूइयं सेयं, अमयस्सावरज्झती // 13 // तत्तेण अणुमिट्ठा ते, अपडिन्नेण जाणया / ण एस णियए मग्गे, यसमिक्खा वती किती // 14 // एरिसाजा वई एसा, अग्गवे गुब्ब करिसिता / गिहिणो अभिह से, भुजिउंण उ भिक्खुणं // 15 // धम्मपन्नवणा जा सा, सारंभा ण विमोहि या / ण उ एयाहिं दिट्ठीहिं, पुवमासि पग्गप्पियं // 16 // सव्वाहिं अणुजुत्तीहि, अचयंता जवित्तए / ततो वायं णिराकिचा, ते भुजोवि पगब्भिया // 17 // रागदोसाभिभूयप्पा, मिच्छतेगां अभिदुता। थाउस्से सरगां अंति, टंकणा इव पव्वयं // 18 // बहुगुणप्पगप्पाई, कुना अत्तममाहिए / जेण न्ने णो विरुज्झज्जा, तेण तं तं समायरे // 11 // इमं व धम्ममादाय, कासवेण पवेइयं / कुज्जा भिक्खू गिलाणस्स, अगिलाए समाहिए // 20 // संखाय पेसलं धम्म, दिट्टिमं परिनिव्वुडे / उवसग्गे नियामित्ता, ग्रामोवखाए परिवएज्जाऽसि // 21 // तिमि // इति तृतीयाध्ययने तृतीयोद्देशकः // 3-3 // (गाथाग्रं 234) // अथ तृतीयाध्ययने चतुर्थोद्देशकः // ग्राहं च महापुरिमा, पुब्बिं तत्ततवोधणा / उदएण सिद्धिमावन्ना, तत्य मदो विसीपति॥ 1 // अभुजिया नमी विदेही, रामगुत्ते य भुजिया। बाहुए उदगं भोचा, तहा नारायणे रिसी // 2 // ग्रामिले देविले चेव, दीवायण महारिसी / पारासरे दगं भोचा, बीयाणि हरियाणि य॥३॥

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