Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 3 ] [ 153 (तिब्बसडढे गया गिह) // 17 // // तिमि // इति तृतीयाध्ययने प्रथमांद्देशकः // 3-1 // (गायाग्रं० 191) // अथ तृतीयाध्ययने द्वितीयोद्दशकः // अहिमे सुहुमा संगा, भिक्खुणं जे दुरुत्तरा / जत्थ एगे विसीयंति, ण चयंति जवित्तए // 1 // अप्पेगे. नाययो (नायगा) दिस्त, रोयंति परिवारिया / पोसणे ताय ! पुट्ठोसि, कस्स ताय ! जहासि णे ? // 2 // पिया ते थेरयो तात !, ससा ते खुड्डिया इमा / भायरो ते सगा तात !, सोयरा किं जहासि णे ? // 3 // मायरं पियरं पोस, एवं लोगो भविस्सति / एवं खुलोइयं ताय !, जे पालंति य मायरं // 4 // उत्तरा (उत्तमा) महुरुल्लावा, पुत्ता ते तात ! खुड्डया / भारिया ते णवा तात !, मा सा अन्नं जणं गमे // 5 // एहि ताय ! घरं जानो, मा य कम्मे सहा वयं / वितियंपि ताय ! पासामो, जामु ताव सयं गिह / / 6 / / गंतु ताय ! पुणो गच्छे, ण तेणारमणो सिया / यकामगं परिकम्मं, को ते वारेउमरिहति ? // 7 // जं किंचि अणगं तात !, तंपि सव्वं समीकतं (उत्तारितं)। हिरराणं ववहाराइ, तंपि दाहामु ते वयं // 8 // इञ्चेव णं सुसेहंति, कालुणीयसमुट्ठिया / विबद्धो नाइसंगेहिं, ततो. गारं पहावइ // 6 // जहा रुक्खं वणे जायं, मालुया पडिबंधई / एव णं पडियंति, णातयो असमाहिणा // 10 // विवद्धो नातिसंगेहि, हत्थीवावी नवग्गहे / पिठुलो परिमप्पंति, सुयगोव्व अदूरए // 11 // एते संगा मणूसाणं, पाताला व अतारिमा / कीवा जत्थ य किस्संति, नाइसंगेहिं मुच्छिया॥१२॥ // 12 // तं च भिक्खू परिन्नाय, सब्वे संगा महासवा / जीवियं नावकंखिजा, मोचा धम्ममणुत्तरं // 13 // अहिमे (अहो इमे) संति श्रावट्टा, कासवेणं पवे. इया / बुद्धा जत्थावसप्पंति, सीयंति अहा जहिं // 14 // रायाणो रायऽमचा य, माहणा अदुव खत्तिया। निमंतयंति भोगेहिं, भिक्खूयं साहुजीविणं
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