Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 18
________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् : श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 2 ] तलूमगा / गंता ते पावलोगयं, चिररायं ग्रासुरियं दिसं // 1 ॥ण पर संखयमाहु जीवितं, तहवि य बालजणो पग-भई / पञ्चुप्पन्नेण कारियं, को ट्ठपरलोयमागते ? // 10 // अदक्खुव दक्खुवाहियं, (तं) सदहसु श्रदक्खुदंसणा ! / हंदि हु सुनिरुद्धदंसणे, मोहणिज्जेण कडेण कम्मुणा // 11 // दुक्खी मोहे पुणो पुणो, निविदेज्ज लिलोगपूयणं / एवं सहिते. हिपासए, यापतुलं पाणेहिं संजए // 12 // गारंपिय पावसे नरे, अणुपुत्रं पाणेहिं संजए। समता सम्बत्थ सुब्बते, देवाणं गच्छे सलोगयं / / 13 / / सोचा भगवाणु गाणं, सच्चे तत्य करेज्जुवकमं / सव्वत्थ विणीयमच्छरे, उच्छं भिक्खु विसुद्धमाहरे // 14 // सव्वं नचा यहिटुए, धम्मट्ठी उपहाणवीरिए / गुते जुत्ते सदाजए, यायपर परमायतहिते / / 15 / / वित्तं पसवो य नाइयो, तं वाले सरणं ति मन्नइ / एते मम तेसुधी यहं, नो ताणं सरणं न विजई // 16 // ग्रभागमितमि वा दुहे, यहवा उकमिते भवंतिए / एगस्त गती य ागती, विदुमंता सरणं ण मनई // 17 // सब्वे सयकम्मकप्पिया, अवियत्तेण दुहेण पाणणो / हिंडंति भगाउला सढा, जाइजरा. मरणेहिऽभिद् ता // 18 // इणमेव खणं वियाणिया, णो सुलभं बोहिं च अाहित / एवं सहिएऽहिया नए, (अहियासर) याह जिणे इणमेव संसगा // 16 // अभविसु पुरावि भिक्यो , थाएमावि भवंति सुव्वता / एयाई गुणाई बाहु ते, कालवस्त अगुधम्म वारिणो / / 20 // तिविहेणवि पाण मा हणे, यायहिते अणियाण संखुड़े / एवं सिद्धा अणंततो, संपइ जे श्र यणागपावरे // 21 // एवं से उदाहु अणुतरनाणी अणुत्तरदंसी श्रगुत्तरनाणदंसणधरे / यरहा नायपुते भगवं वेतालिए वियाहिए // 22 // निवेमि // (गाथायं. 174 ) // इति द्वितीयाध्ययने तृतीयोद्देशकः / / 2-3 / इति दिनोयमध्ययनम् // 2010

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