Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 17
________________ 150 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्युः :: प्रथमो विभागः ण य संपसारए / नचा धम्मं अणुत्तरं, कयकिरिए णयावि मामए॥२८॥छन्नं च पसंस णो करे, न य उकोस पगास माहणे / तेसिं सुविवेगमाहिए, पणया जेहिं सुजोसियं धुयं // 26 // अणिहे (यणहे) सहिए सुसंवुडे, धमट्ठी उवहा. णवीरिए / विहरेज समाहिइंदिए, अत्तहियं खु दुहेण लभइ // 30 // ण हि गुण पुरा अणुस्सुतं (यवितह), अदुवा तं तह णो समुट्ठियं / मुणिणा सामाइग्राहितं, नाएणं जगसव्वदंसिणा // 31 // एवं मत्ता महंतरं, धम्ममिणं सहिया बहू जणा / गुरुगो छंदाणुवत्तगा, विरया तिन्न महोघमाहितं // 32 // तिबेमि // (गाथाश्रम् 152) // इति द्वितीयाध्ययने द्वितीयोदे शकः / / 2-2 // // अथ द्वितीयाध्ययने तृतीयोद्देशकः // संवुडकम्मस्स भिक्खुणो, जं दुक्खं पुढे बोहिए / तं संजमयोऽ. वचिजई, मरणं हेच्च वयंति पंडिया // 1 // जे विनवणाहिजोसिया, संतिन्नेहिं सम वियाहिया / तम्हा उड्वति पासहा (उड्दं सिरियं अहे तहा), अदक्खु कामाइ रोगवं // 2 // या वणिएहिं पाहियं, धारती राईणिया इहं / एवं परमा महब्बया, यक्खाया उ सराइभोयण। // 3 // जे इह सायागुगा नरा, अझोववनाकामेहिं मुच्छिया / किवणेण संमं पगम्भिया, न वि जाणंति समाहिमाहितं // 4 // वाहेण जहा व विच्छर, अवले होइ गवं पत्रोइए। से अंतप्तो अपथाए, नाइवहइ अबले विसीयति // 5 // एवं कामेसणं विऊ, अज सुर पयहेज संथां / कामी कामे ण कामए, लद्धे बावि अलद्ध कराहुई // 6 // मा पच्छ असाधुता भो, अच्चेही अणुसास अप्पगं / अहियं च असाहु सोयती, से थणत! परिदेवती बहुं // 7 // इह जीवियमेव पासहा, तरुण एव (दुबल) वाससयस्त तुट्टती / इत्तरवासे य बुज्झह, गिद्धनरा कामेसु मुच्छिया॥८॥जे इह यारंभनिस्सिया, यातदंडा एगं

Loading...

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122