Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 146 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः। प्रथमो विभागः इहमेगेसिमाहियं / विपरीयपन्नमंभूयं, यन्नउत्तं तयाणुयं // 5 // अणते निइए लोए, सासए ण विणस्सती / अंतवं गिइए लोए, इति धीरोऽतिपासइ // 6 // श्रपरिमाणां वियाणाई, इहमेगेसिमाहियं / सम्वत्थ सपरिमागां, इति धीरोऽतिपासई ॥७॥जे केइ तसा पाणा, चिट्ठति अदु थावरा / परियाए अस्थि से अंजू, जेण ते तसथावरा // 8 // उगलं जगतो जोगं, विवज्जासं पलिंति य / सव्वे अक्कतदुक्खा य, यो सत्वे अहिंसिता // 1 // एयं खु नागिणो सारं, जन्न हिंसइ किंवण / अहिंसासमयं चेव, एतावन्तं वियाणिया / / 1.0 // वुसिए य विगयगेही (विगयगिद्धी य) अायागीयं संरक्खए (यायाणं सं (सम्म)रक्खए) / बरियासणसेज्जासु, भत्तपाणे श्र अंतसो // 11 // एतेहिं तिहिं ठाणेहिं, संजए सततं मुणी / उक्कसं जलणं णूम, मज्झत्थं च विगिंवए // 12 // समिए उ सया साहु, पंचसंवरसंवुडे / सिएहि असिए भिक्खू , ग्रामोक्खाय परिव्वएज्जासि // 13 // त्तिवेमि // - // इति प्रथमाध्ययने चतुर्थोद्देशकः // 1-4 // इति प्रथमाध्ययनम् // 1 // ॥अथ वैतालीयाख्ये द्वितीयाध्ययने प्रथमोशकः॥ ___ संबुज्झह किं न बुज्झह ?, संघोही खलु पेच्च दुल्लहा / णो हूवणमंति राइयो, नो सुलभं पुणरावि जीवियं // 1 // डहरा बुड्ढा य पासह गब्भत्था वि चयंति माणवा / सेणे जह वट्टयं हरे एवं पाउखयंमि तुट्टई (जीवाण जीवियं) // 2 // मायाहिं पियाहिं लुप्प३, नो सुलहा सुगई य पेच्चयो / एयाइं भवाई पेहिया, प्रारम्भा विरमेज सुब्बए सुट्ठिए // 3 // जमिणं जगती पुढो जगा, कम्मेहिं लुप्पंति पाणिणो / सयमेव कडेहिं गाहइ, णो तस्स मुन्चेज पुठ्ठयं // 4 // देवा गंधपरक्खसा, असुरा भूमिचरा सरिसिवा / सया नरसेट्ठिमाहणा, ठाणा ते वि चयंति दुक्खिया // 5 // कामेहिं ण संथवेहि गिद्धा (कामे हि य संथवे हि य) कम्मसहा कालेण जंतवो। ताले जह
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