Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 12
________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् : श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 2 ] [ 145 लोण, बंभउत्तेति बावरे // 5 // ईसरेगा कडे लोए, पहाणाइ तहावरे / जीजीवसमाउत्ते, सुहदुक्खसमन्निए // 6 // सयंभुणा कडे लोए, इति वृत्तं महसिणा / मारेण संथुया माया, तेण लोए अतासए // 7 // माहणा समणा एगे, ग्राह अंडकडे जगे। अतो तत्तमकासी य. श्रयाणंता मुसं वदे // 8 // सएहिं परियाएहिं, लोयं ब्रूया कडेति य / तत्त ते ण विजाणंति (नाभिजाणंति) ण विणासी कयाइवि // 1 // श्रमणुन्नसमुप्पायं, दुक्खमेव विजाणिया / समुपायम नाणंता, कह नायति संवर ? // 10 // सुद्धे पावए आया, इहमेगेसिमाहियं / पुणो किड्डापढोसेगां, सो तत्थ अवरज्झई // 11 // इह मंबुडे मुणी जाए, पच्छा होइ अपावए / वियडंबु जहा भुजा, नीरयं सरयं तहा // 12 // एताणुगीति मेधावी, बभचेरेण ते वसे / पुढो पावाउया सब्वे, अक्खायारो सय सयं // 13 // सए सए उबट्ठाणे, सिद्धिमेव न अन्नहा / यही इहेव वसवत्ता, सबकामसमप्पिए // 14 // सिद्धा य ते अरोगा य, इहमेगेसिमाहियं / सिद्धिमेव पुरो काउं, सासए गदिश्रा नरा / / 15 // असंवुडा अणादीयं, भमिहिंति पुणो पुणो / कप्पकालमुवज्जति, ठाणा श्रासुरकिब्बिसिया // 16 // // इति धेमि // 075 / / इति प्रथमाध्ययने तृतीयोद्देशकः 1-3 // // अथ प्रथमाध्ययने चतुर्थ उद्देशकः // एते जिया भो / न सरणं, बाला पडियमाणिणो (जत्थ बालेऽवसी. यति) / हिचा गां पुब्बसंजोगं, सिया किचोवएसगा // 1 // तं च भिक्खू परिनाय, वियं तेसु ण मुच्छए / अणुकस्से अप्पलीणे, मज्झेण मुणि जावए // 2 // सपरिग्गहा य सारंभा, इहमेगेसिमाहियं / अपरिग्गहा अणारंभा, भिक्खू तागां परिवए // 3 // कडेसु घासमेसेज्जा, विऊ दत्तेसणं चरे / अगिद्धो विप्पमुक्को श्र, श्रोमागां परिवज्जए // 4 // लोगवायं णिसामिज्जा,

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