Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 10
________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् -:: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 1 ] [ 143 अराणोहिं, वेदयंति पुढो जिया। संगइयं तं तहा तेसिं, इहमेगेसि पाहिग्रं // 3 // एवमेयाणि जपंता, बाला पंडिग्रमाणिणे। निययानिययं संतं, अयाणंता अशुद्धिया // 4 // एवमेगे उ पासत्या, ते भुजो विप्पगन्भिया / एवं उपट्टि(पट्टि)या संता, ण ते दुक्खविमोक्खया // 5 // जविणो मिगा जहा संता, परिताणेण वजिया / संकियाई संकंति, संकियाइं असंकिणो // 6 // परियाणियाणि संकेता, पासिताणि असंकिणो। अराणाणभयसंविग्गा, संपलिंति तहिं तहिं // 7 // ग्रहतं पवेज बज्झ, अहे बज्झस्स वा वए। मुच्चेज्ज पयपामायो (पम्पासाई), तं तुम दे ण देहए // 8 // अहियप्पाऽहि. यपराणाणे, विसमतेणुवागते / स बद्धे पयपासेणं, तत्थ घायं नियच्छइ // 4 // एवं तु समणा एगे, मिच्छदिट्ठी यणारिया / असंकिग्राइं संकंति, संकियाई असंकिणो // 10 // धम्मपराणवणा जा सा, तं तु संकति मूढगा। श्रारंभाई न संकंति, अवियत्ता अकोविया // 11 // सव्वप्पगं विउकस्सं, सव्वं गुमं विहूणिया / अप्पनियं अकम्मसे, एयम8 मिगे चुए // 12 // जे एयं नाभिजाणंति, मिच्छदिट्ठी प्रणारिया / मिगा वा पासबद्धा ते, घायमेसंति णंतसो // 13 // माहणा समणा एगे, सव्वे नाणं सयं वए / सव्वलोगेऽवि जे पाणा, न ते जाणंति किंचण // 14 // मिलक्खू अमिलक्खुस्स, जहा वुत्ताणुभासए ण हेउं से विजाणाइ, भासिधे तऽणुभासए // 15 // एमवन्नाणिया नाणं, वयंतावि सयं सयं / निन्छयत्यं न याणंति, मिलक्खुव अबोहिया // 16 // अन्नाणियाणं वीमंसा, श्रराणाणे ण (नाणे नो व) विनियच्छइ / अपणो य परं नालं, कुतो अनाणुसासिउँ ? // 17 // वणे मूढे जहा जंतू , मूढे गोयाणुगामिए / दोवि एए अकोविया, तिव् सोयं नियच्छङ्॥१८॥ अंधो अंधं पहं णितो, दूरमद्धाणु गच्छइ / श्रावज्जे उप्पहं जंतू , अदुवा पंथाणुगामिए // 19 // एवमेगे णियायट्ठी, धम्ममाराहगा वयं / अदुवा अहम्ममावज्जे, ण ते सवज्जुयं वए // 20 // एवमेगे वियकाहिं, नो अन्न पज्जुवासिया /

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