Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 14
________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् / श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 1 ] [ 147 बंधणच्चुए, एवं श्राउखयंमि तुती // 6 // जे यावि बहुस्सुए सिया (सुई), धम्मिय माहणभिक्खुए सिया / अभिणूमकडेहिं मुच्छिए, तिव्वं ते कम्मेहिं किवती / / 7 / यह पास विवेगमुट्ठिए, अवितिन्ने इह भासई धुवं / णाहिसि प्रारं कयो परं. वेहासे कम्मेहिं किञ्चती // 8 // जइ वि य णिगणे किसे चरे, जइविय भुजिय मारमंतसो।जे इह मायाइ मिजई, यागंता गम्भाय गंतसो // 3 // पुरिसोरम पावकम्मुणा, पलियंतं मणुयाण जीवियं / सन्ना इह काममुच्छिया, मोहं जाते नरा असंवुडा // 10 // जययं विहराहि जोगवं अणुपाणा पंथा दुरुत्तरा / यगुसासणमेव पक्कमे, वीरेहिं संमं पवेड्यं // 11 // विरया वीरा समुट्ठिया, कोहकायरियाइपीसणा / पाणे ण हणंति सव्वसो, पावायो विरयाऽभिनिव्वुडा // 12 // णवि ता अहमेव लुप्पए, लुप्पंती लोग्रंसि पाणिणो / एवं सहिएहिं पासए, अणिहे से पुढे यहियासए. // 13 / / धुणिया कुलियं व लेववं, किसए देहमणासणा इह / अविहिंसामेव पव्वए, अणुधम्मो मुणिणा पवेदितो // 14 // सउणी जह पंसुगुडिया, विहुणिय धंसयई सियं रयं / एवं दवियोवहाणवं, कम्मं खबइ तवस्तिमाहणे // 15 // उठ्ठियमणगारमेसणं, समणं ठाणठियं तवस्सिणं / डहरा वुड्डा य पत्थर, अवि सुस्से ण य तं लभेज णो॥१६॥ जइ कालुणियाणि कासिया, जइ रोयति य पुत्तकारणा / दवियं भिक्खु समुट्ठियं, णो लभंति ण संठवित्तए // 17 // जइविय कामेहिं लाविया, जइ गणेजाहि ण बंधिउं घरं / जइ जीविय नावकंखए, णो लभंति ण संठ(सराण)वित्तए // 18 // सेहंति य णं ममाइणो, माय पिया य सुया य भारिया / पोसाहि ण पासयो तुम, लोग परंपि जहासि पोसणो // 16 // अन्ने अन्नेहिं मुच्छिया, मोहं जंति णरा असंवुडा / विसमं विसमेहिं गाहिया, ते पावेहिं.पुणो पगन्भिया // 20 // तम्हा दवि इक्ख पंडिए, पावायो विरतेऽभिणिव्वुडे / पणए वीरं महाविहि, मिद्धिपहं गोपाउयं धुवं // 21 // वेयालियमग्गमागयो, मणवयसाकायेण

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