________________ महाप्रत्याख्यान में कुल 142 गाथाएँ हैं / इनमें मुर्शिदाबाद, बालाभाई ककलभाई-अहमदाबाद, मंगल अभिधेय के पश्चात् त्रिविधा व्युत्सर्जना, आगमोदय समिति, हर्ष पुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला, सर्वजीवक्षमणा, निन्दा-गर्दा आलोचना, ममत्व- महावीर जैन विद्यालय, बम्बई, जैनधर्म प्रसारक छेदन, आत्मा का स्वरूप, मूल और उत्तर गुणों में सभा से केवल मूल तथा आगम संस्थान, उदयपुर प्रमाद की निन्दा, एकत्वभावना, संयोगसम्बन्ध से हिन्दी अनुवाद के साथ / व्युत्सर्जना, असंयम आदि की निन्दा, मिथ्यात्व का ७-चतुःशरण-प्रस्तुत प्रकीर्णक में कुल 27 त्याग, अज्ञात अपराध की आलोचना का स्वरूप, गाथाएँ हैं / इसके कर्ता का कोई उल्लेख नहीं शल्योद्धरण प्ररूपण, आलोचना का फल, निर्वेद है / इसकी प्रथम गाथा में कुशलता हेतु उपदेश, पण्डितमरण का प्ररूपण, पञ्चमहाव्रत की चतुःशरणगमन, दुष्कृत गर्हा और सुकृत का रक्षा, तप का महात्म्य, अनाराधक का स्वरूप, अनुमोदना - इन तीन अधिकारों का निर्देश है / आराधना का महात्म्य, पाप आदि का प्रत्याख्यान, इसी के अनुसार विषय का प्रतिपादन किया गया सभी जीवों के प्रति क्षमाभाव, प्रत्याख्यान पालन है / यह ग्रन्थ केवल महावीर जैन विद्यालय से ही के फल आदि का विस्तार से वर्णन है / वर्तमान प्रकाशित है। में इसके प्रकाशित संस्करण हैं - बावू धनपत ८-भक्तिपरिज्ञा-भक्तपरिज्ञा में 172 गाथाएँ सिंह-मुर्शिदाबाद, . बालाभाई ककलभाई- हैं। इसके कर्ता वीरभद्र है / इसमें मङ्गलअहमदाबाद, आगमोदय समिति, हर्ष पुष्पामृत जैन अभिधेय के पश्चात् ज्ञान का महात्म्य, अशाश्वत ग्रन्थमाला एवं महावीर जैन विद्यालय, बम्बई से सुख की निष्फलता, जिनाराधना में शाश्वत सुख, मूल प्राकृत एवं आगम संस्थान उदयपुर से हिन्दी अभ्युद्धत मरण के तीन भेद, भक्तपरिज्ञा मरण के अनुवाद के साथ / इसके कर्ता अज्ञात हैं। दो भेद, शिष्य द्वारा व्याधिग्रस्त होने पर गुरु से ६-संस्तारक-इसके भी कर्ता अज्ञात हैं / भक्तपरिज्ञा मरण की अनुमति माँगना तथा गुरु अन्तिम आराधना के प्रसंग में स्वीकार किये जाने द्वारा इसकी अनुमति के साथ आलोचना का वाले दर्भादि आसन को संस्तारक कहा जाता है। उपदेश, प्रायश्चित्त पञ्चमहाव्रत का आरोपण, इसमें कुल 122 गाथाएँ हैं / संस्तारक में सामयिक का आरोपण, शिष्य द्वारा क्षमणादि, गुरु मंगलाचरण के बाद संस्तारक के गुणों, संस्तारक द्वारा अनुशासन का उपदेश आदि के विस्तृत का स्वरूप, इसके लाभ और सुख की महिमा के वर्णन के पश्चात् भक्तपरिज्ञा के महात्म्य का वर्णन तथा संस्तारक ग्रहण करने वाले वर्णन किया गया है / यह ग्रन्थ बाबू धनपत सिंहपुण्यात्माओं के नामोल्लेख हैं / अन्त में संस्तारक मुर्शिदाबाद, बालाभाई ककलभाई-अहमदाबाद, ग्रहण करने की. क्षमापना और भावना का आगमोदय समिति, हर्ष पुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला, निरूपण हैं / इस प्रकीर्णक के प्रकाशित सात महावीर जैन विद्यालय तथा जैनधर्म प्रसारक सभा संस्करण इस प्रकार हैं - बाबू धनपत सिंह- से मूल रूप में प्रकाशित है / प्रकीर्णक साहित्य : एक अवलोकन 35