________________ क्षेत्र अर्थात् ढाई द्वीप के आगे के द्वीप एवं सागरों हैं / इस ग्रन्थ के प्रकाशित संस्करण हैं-हर्ष की संरचना का वर्णन किया गया है / इसमें पुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला एवं महावीर जैन मानुषोत्तर पर्वत, नलिनोदक आदि सागर, विद्यालय से मूल तथा आगम संस्थान उदयपुर से नन्दीश्वर द्वीप, अंजन पर्वत, दधिमुख पर्वत, हिन्दी अनुवाद के साथ / रतिकर पर्वत, कुण्डलद्वीप, कुण्डलव समुद्र, ३०-गच्छाचार-इस प्रकीर्णक में 137 गाथाएँ रूचक द्वीप, रूचक नग, रूचक नग के कूट, हैं / यह प्रकीर्णक छेद सूत्रों के आधार पर रचा दिशाकुमारियां एवम् उनके स्थान, दिग्गजेन्द्र, गया है / यह ग्रन्थ आगम-विहित मुनि-आचार का जम्बूदीप आदि द्वीप और लवण समुद्र आदि समुद्रों समर्थक और शिथिलाचार का विरोधी है / इस के अधिपति देव, तेगिच्छी पर्वत एवं चमरचंचा ग्रन्थ का उल्लेख सर्वप्रथम विधिमार्गप्रपा राजधानी का विस्तार से निरूपण किया गया है। (जिनप्रभ, १४वीं शताब्दी) में प्राप्त होता. है / इस प्रकीर्णक के प्रकाशित संस्करण हैं - महावीर इसमें मङ्गल-अभिधेय . के पश्चात् जैन विद्यालय से मूल तथा चन्दनसागर ज्ञान उन्मार्गगामीगच्छ में संवास से हानि, सदाचारीगच्छ भण्डार, बैजलपुर एवं आगम संस्थान, उदयपुर से में संवास के गुण, आचार्यस्वरूप का वर्णन, हिन्दी अनुवाद के साथ / साधुस्वरूप का वर्णन, आर्यास्वरूप का वर्णन कर ___२९-वीरस्तव-प्रस्तुत प्रकीर्णक में 43 गाथाएँ अन्त में ग्रन्थ का उपसंहार किया गया है / प्रस्तुत हैं / इसमें महावीर की स्तुति उनके छब्बीस नामों प्रकीर्णक के प्रकाशित सात संस्करण हैं / ये हैं - द्वारा की गयी है / प्रथम गाथा में मङ्गल और बालाभाई ककलभाई, अहमदाबाद; आगमोदय अभिधेय है / तत्पश्चात् महावीर के छब्बीस नामों समिति; हर्ष पुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला तथा महावीर को गिनाया गया है, जो इस प्रकार हैं- १-अरूह, जैन विद्यालय से मूल रूप में और दयाविमल जैन २-अरिहंत, ३-अरहंत, ४-देव, ५-जिण, ६-वीर, ग्रन्थमाला से संस्कृत, भूपेन्द्र साहित्य समिति, ७-परमकारुणिक, ८-सर्वज्ञ, ९-सर्वदर्शी, आहोर से संस्कृत एवं हिन्दी तथा आगम संस्थान १०-पारग, ११-त्रिकालविद्, १२-नाथ, उदयपुर से हिन्दी अनुवाद सहित / १३-वीतराग, १४-केवली, १५-त्रिभुवन गुरु, ३१-सारावली-इसमें 116 गाथाएँ हैं / इस ग्रन्थ १६-सर्व, १७-त्रिभुवन वरिष्ठ, १८-भगवन्, में पुण्डरीक अर्थात् शत्रुञ्जय तीर्थ का स्तवन १९-तीर्थङ्कर, २०-शक्र-नमस्कृत, २१-जिनेन्द, किया गया है, इसके प्रारम्भ में कहा गया है कि २२-वर्द्धमान, २३-हरि, २४-हर, २५-कमलासन जिस भूमि पर पञ्चपरमेष्ठियों का विचरण होता और २६-बुद्ध / है, उसे देव और मनुष्यों के लिए पूज्य माना जाता इसके आगे इन नामों का अन्वयार्थ किया गया है / 12 धातकी खण्ड के नारदऋषि दक्षिण भरत है / इनमें अरिहंत के तीन, अरहंत के चार, क्षेत्र में स्थित पुण्डरीक शिखर पर देवों का प्रकाश भगवान् के दो तथा शेष के एक-एक अन्वयार्थ देखकर पुण्डरीक शिखर की पूजा का कारण ज्ञात प्रकीर्णक साहित्य : एक अवलोकन 42