________________ ७५-महास्वप्नभावना व्य. पा०, योगनन्दी का अधिकांश भाग उपेक्षित रहा है / कुछ ही ७६-वरुणोपपात व्य०, नं०, पा०, ठा० प्रकीर्णकों का अनुवाद सीमित संस्थानों द्वारा हो ७७-विद्याचरणविनिश्चय नं०, पा० पाया है यद्यपि इसके बृहद् अध्ययन की ७८-विहारकल्प . . नं., पा० आवश्यकता है / ऋषिभाषित पर जर्मनी से ७९-वीतरागश्रुत नं., पा० प्रकाशित संस्करण में शुब्रिग ने इसकी भूमिका में ८०-वृष्णिका पा०, योगनन्दी इसके ऐतिहासिक महत्त्व पर प्रकाश डाला है / ८१-वेलन्धरोपपात व्य०, नं०, पा०, ठा० प्रो० सागरमर जैन ने भी अपनी पुस्तक ८२-वैनयिक ध० ऋषिभाषित : एक अध्ययन में भी जैन-साहित्य के ८३-वैश्रमणोपपात नं०, पा०, ध०, ठा. ऐतिहासिक विकासक्रम में प्रस्तुत प्रकीर्णक की ८४-वियाहचूलिका व्य०,नं०,पा०,ध०, ठा. महत्त्वपूर्ण भूमिका को उजागर किया है / इनकी ८५-संक्षपित दशा ठा० 755 विषयवस्तु के अध्ययन से लगता है कि अङ्ग ८६-संग्रहणी विधि आगमों की अपेक्षा साधना की दृष्टि से ये काफी ८७-समुत्थानश्रुत व्य०, नं०, पां०, और. महत्त्वपूर्ण हैं / प्रकीर्णकों के अध्ययन की दिशा में ८८-संलेखना नं, पा० / कोई प्रयास न होने की वजह से इनमें से अधिकांश संक्षिप्त नाम संकेत-सूचि नष्ट होने के कगार पर हैं या हो गये हैं / ठा० - ठाणांग, नं० - नन्दीसूत्र, व्य० - व्यवहार, आवश्यकता इस बात की है कि इन प्रकीर्णकों के ध० - धवला, विधि-विधिमार्गप्रपा, पा० - खोज, सम्पादन, प्रकाशन, पाठ की प्रामाणिकता, पाक्षिकसूत्र हिन्दी सहित विभिन्न भाषाओं में अनुवाद तथा इस प्रकार कुल उपलब्ध और अनुपलब्ध (पर इसके गम्भीर समीक्षात्मक अध्ययन की बृहद् प्रमाणसहित) प्रकीर्णकों की कुल संख्या 88 है। योजना बनाकर इस दिशा में कार्य हो / फिलहाल वर्तमान में श्वेताम्बर तेरापंथी और आगम, अहिंसा, समता एवं प्राकृत संस्थान स्थानकवासी सम्प्रदाय प्रकीर्णकों को आगम- उदयपुर द्वारा प्रकीर्णकों के हिन्दी अनुवाद का साहित्य के अन्तर्गत मान्य नहीं करते हैं तथा कार्य हाथ में लिया गया है लेकिन इनके विषय की मूर्तिपूजक सम्प्रदाय भी केवल दस प्रकीर्णक को व्यापकता को देखते हुए इस दिशा में और भी ही आगमों के अन्तर्गत मान्य करता है / दिगम्बर प्रयास होने की जरूरत है जिससे जैन-प्राकृतसम्प्रदाय के अनुसार षट्खण्डागम और साहित्य और इस प्रकार भारतीय साहित्य के एक कसायपाहुड को छोड़ शेष आगमों का लोप हो पक्ष को समग्रता में प्रस्तुत किया जा सकता है / चुका है / इन परिस्थितियों में प्रकीर्णक साहित्य श्रमण/जनवरी जून 2002 संयुक्तांक 3. यह बात अपूर्ण है ।मूर्तिपूजक सम्प्रदाय दस प्रकीर्णकों को 'आगम' के स्वरूप में नहीं अपितु '45 आगम' के स्वरूप में स्वीकृत करता है / अन्य-अन्य प्रकीर्णकों को 'आगम नहीं हैं' - ऐसा यह सम्प्रदाय नहीं मानता / / .. 46 प्रकीर्णक साहित्य : एक अवलोकन