________________ के० एम० मडयाता, फलौदी से प्रकाशित है। ४७-उत्थानश्रुत व्य०, नं०, प्रा. जौहरीमल पारख के अनुसार इसका मुद्रित पाठ ४८-आशीविषभावना व्य०, पा०, योगनन्दी सन्तोषजनक नहीं है / ४९-कल्पाकल्प नं०, पा० ध० ४२-योनिप्राभृत-इसके ग्रन्थाग्र 800 (श्लोक ५०-कल्पिका . नं०, पा० 32 अक्षर का) है / यह आचार्य घरसेन की रचना ५१-कृतिकर्म ध०, 97 है और श्वेताम्बरों में प्रकीर्णक रूप में मान्य है / ५२-क्षल्लिकाविमानप्रविभक्ति ठा,नं०,पा०, व्य. इसकी एकमात्र ताड़पत्रीय प्रति पूना में खण्डित ५३-गरुडोपपात ठा०, नं०, पा०, व्य० अवस्था में है / विषयवस्तु शीर्षकानुसार है / 5 ५४-चरणविधि नं०, पा० . ४३-जम्बूचरितप्रकीर्णक-इस नाम के दो ग्रन्थ ५५-चारणस्वप्नभावना व्य०, पा०, योगनन्दी है / एक जम्बूस्वामी का चरित्र है, जो 31 अध्यायों ५६-चुल्लकल्पश्रुत नं०, पा० में पद्मसुन्दर द्वारा सङ्कलित है / बहुत से विद्वान् ५७-तेजोनिसर्ग व्य०, पा०, योगनन्दी इसे ही प्रकीर्णक मानने के पक्ष में हैं / दूसरा ग्रन्थ ५८-दीर्घदशा ठा० 755 जम्बूप्रकरण या जम्बूद्वीपसमास के नाम से मिलता ५९-दृष्टिविषभावना व्य०, पा०, योगनन्दी है / इसमें जम्बूद्वीप का भूगोल है / इसकी कई ६०-देवेन्द्रोपपात . व्य०, नं०, पा० प्रतियाँ विभिन्न ग्रन्थ भन्डारों में हैं / इसमें 127 ६१-द्विगिद्धिदिशा ठा० 755 : गाथाएँ हैं / इन दोनों में से किसी का मुद्रण अभी ६२-धरणोपपात व्य०, नं०, पा. तक नहीं हुआ है / जिनरत्नकोश में जम्बूचरित्र के ६३-ध्यानविभक्ति तीन और नाम मिलते हैं-आलापकस्वरूप, नं०, पा० ६४-नागपरिज्ञापनिका जम्बूदृष्टान्त और जम्बूअध्ययन, जो प्रकीर्णक होने के द्योतक हैं / 16 ६५-पुण्डरीक में उपरोक्त 43 प्रकीर्णकों के अतिरिक्त कछ ऐसे ६६-पारुषामण्डल __नं०, पा० प्रकीर्णक हैं जो वर्तमान में प्राप्त नहीं हैं / यद्यपि ६७-प्रमादाप्रमाद नं०, पा० ६८-बन्धदशा उनके नाम यत्र-तत्रं मिलते हैं / इनकी संख्या 45 ठा० 755 है। इनके नाम व प्रमाणभूत ग्रन्थों का विवरण ६९-मण्डलप्रवेश नं०, पा० निम्नप्रकार हैं - . ७०-मरणविशुद्धि योगनन्दी नाम प्रमाणभूत ग्रन्थ ७१-महतीविमानप्रविभक्ति व्य०, नं०, पा०, ठा० १४-अरुणोपपात ठा०नं०पा०व्य. ७२-महाकल्पश्रुत नं०, पा०, ध० ४५-आत्मविभक्ति पाव्योगनन्दी ७३-महापुण्डरीक * ध० ४६-आत्मविशुद्धि . . नं०, पा० / ७४-महाप्रज्ञापना नं०, पा० २४.प्रकीर्णक साहित्य : मनन और मीमांसा, पृ-७४ 15. प्रकीर्णक साहित्य : मनन और मीमांसा, पृ-७५ 16. प्रकीर्णक - साहित्य : मनन और मीमांसा, पृ-७५ प्रकीर्णक साहित्य : एक अवलोकन 45