Book Title: Agam Chatusharan Prakirnakam
Author(s): Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 298
________________ खण्ड-३/परिशिष्टः-६ 235 किम् ? इत्याह-'सिढिलीभवंति' थीभवन्ति, मन्द- शुं ? तो 4 छ , विपान मं५५॥३५ शिथिल थाय विपाकतया / छ, तथा तथा 'परिहायंति' परिहीयन्ते, पुद्गलापसरणेन / भगबाना 2 था 43 ना पा छ, तथा 'खिज्जति' क्षीयन्ते निर्मूलत एवाशयविशेषा- शयविशेषपूर्व सभ्यास द्वा२। भूगथी 4 नाश पामे भ्यासद्वारेण / छे. के ? इत्याह- ‘असुहकम्माणुबंधा' अशुभकर्मानुबन्धा in ? तो छ , भा१३५ अथवा भविशेष३५ भावरूपाः कर्मविशेषरूपा वा / अशुभ ना अनुधा (शिथील थाय छे वगैरे...) / ततः किम् ? इत्याह-'निरणुबंधे वाऽसुहकम्मे तनाथी | थाय छ ? तो छ 3, 8 शेष 4शुम-भ निरनुबन्धं वाऽशुभकर्म यच्छेषमास्ते सत्तामा छे ते अशुभम निरनुबंध थाय छे. 'भग्गसामत्थे सुहपरिणामेणं' भग्नसामर्थ्य विपाक- पूर्वमा 38 // सूत्रना प्रभाव 43 रीने यता शुल्म प्रवाहमङ्गीकृत्य शुभपरिणामेनानन्तरोदितसत्रप्रभवेन। परम 43, 4 मशुम भनी मनु०५ शेष छ તે વિપાક પ્રવાહને આશ્રયીને ભગ્ન સામર્થ્યવાળો થાય છે. किमिव इत्याह- 'कडगबद्धे विय विसे अप्पफले सिया, नीम ? तो छ 3, मंत्र सामथ्यथा 1250 कटकबद्धमिव विषं मन्त्रसामर्थ्येनाल्पफलं स्यात, धाये विषनी से सस्य इणवायुं थाय छे. .... अल्पविपाकमित्यर्थः तथा 'सुहावणिज्जे सिया,' सुखापनेयं स्यात् संपूर्ण- शेष सशुल्मभनो मनुष्य संपू[ 2535 4 सुमे रीने स्वरूपेणैव / (2 थाय छे. तथा अपुणभावे सिया,' अपुनर्भावं स्यात् कर्म, पुनस्त- ते 4 4 ३री ना धावन स्वभावाणु थाय थाऽबन्धकत्वेन / छ. एवमपायपरिहारः फलत्वेनोक्तः / / प्रभारी - अशुम अनुमi sii नाश पामेछ. તે રીતે અપાયનો પરિહાર કહેવાયો.

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