Book Title: Agam Chatusharan Prakirnakam
Author(s): Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 318
________________ खण्ड-३/परिशिष्टः-९ 255 आधचरणः चतुःशरणः मूलग्रन्थः | आधचरणः चतुःशरण मूलग्रन्थः गाथा गाथा प्रबलबलदशाह श्री 42 [ ] सत्तविहबंधगा हुंति 60 [पञ्चाशक०] बहुभत्तिब्भर 16 [ ] सत्तरिसयमुक्कोसं 21 [ ] भगवंति वद्धमाणे 22 [ ] समत्तदेसविरयाण 47 [वि०आ०भा०] भवविरियं गुणविरियं 7 [ ] सम्मत्तम्मि य लद्धे 42 [वि०आ०भा०] मणसा मिच्छादुक्कड 5 [ . ] सम्मत्तस्स सुयस्स य 45 [वि०आ०भा०] मरणं च होइ दसमं 39 [दशहारि०वृ०] सम्ममणुव्वय 57 [ ] मिच्छत्तपडिक्कमणं 5 [आव० निर्यु] संवच्छरमुसभ . 14 [उपदेशमाला मूलुत्तरगुणरुवस्स 6 [आव० निर्यु.] संवरफलं तपो 30 [प्रशमरति] मृद्वी शय्या प्रात 32 [षड्द. समु०वृ०] सयलसुरासुरपणमिय. 36 [ ] मोहाउयवज्जाणं 60 [पञ्चाशक०] सव्वदेवा वि णं . 9 [आव०चू०] यद् भूतहितमत्यन्तं 17 [ ] सव्वनइणं जा हुज्ज 48 [कल्पसूत्र वृ०] ये जानन्ति विचित्रशास्त्र 11 [प्रवच० सारो०] | सव्वपगईणमेवं 60 [वि०आ०भा०] योगनिरोधाद् भव 30 प्रशम रति सव्वसुरासुरकिंनर 48 [ ] रविणो उदयत्यंतर 28 [बृहत्संग्र०] | सव्वाऊयं पि सोया 20 [आव० निर्यु.] रिजु सामन्नं तम्मत्त / 32 . [वि.आ.भा.] | सव्वे वि य सिद्धंता 48 [आव० हारि०] रिभिय पयऽखरसबला 19 [ध्या०शवृ०] सव्वो वि नाण-दंसण 52 [ ] लक्खेहिं इक्कवीसाइ [वि.आ.भा.] सर्वं पश्यतु वा मा. 51 [स्याद् मञ्जरी] वन चउक्कागुरु 59 [नवतत्त्व०] सल्लं कामा,विसं 46 [उत्तरा० सूत्र] वंदिज्जमाणा न. 37 [आव० नि० सा उच्चगोय. 59 नवतत्त्व वासोदगस्स व जहा 19 [आव०नियु] | सावज्जजोगविरई 1 [अनु॰सू०] विउलं वत्थुविसेसेण 32 [वि०आ०भा०] | सिरि समणसंघ आसायणाए५२ [ ] विणयज्जुयस्स गुणिणो 30 [ ] सिद्धाणि सव्वकज्जांणि 24 [ ] विणयोवयार माणस्स 4 [आव० नियु] सुतत्त्थ हेउ कारण 32 व्यव०भा०] विततमतिसमृद्धः 42 [ ] सेसा उ निययभत्ता 34 [वि०आ०भा०] विनयफलं शुश्रूषा 30 [प्रशमरति] हत्वा जीव सहस्राणि 31 [गरुड पुराण०] सत्तऽट्ठ भवग्गहणं 36 [ ] हसिय ललिय उवगूहिय 39 दश०नियु०]

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