Book Title: Agam Chatusharan Prakirnakam
Author(s): Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan
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________________ 278 आराधनापताका / सिद्धतवायणाए गहणं तह गाहणं च सिस्साणं / निम्माणमठव्याणं सुपसत्थाणं च सत्याणं / / 320 / / वित्तीर्ण चुन्नीर्ण करणं कयपुख्यसरिगंथाणं / सम्मत्त-सव्यविरईए देसविरईए आरोवो // 321 / / नियमाऽभिग्गहगहणं सर्प परेहि गहावणं विहिणा / परिगहपमाणकरणं सभंगयं सड्ड-सड्डीणं / / 322 / / पडिमारोवो तेसिं तहेव आलोपणापयाणं घ / निष्फायणं च विणओवयारनिठणाण सिस्साणं / / 323 / / आयरियाणं उवझाययाण समहत्तराण पपठवणं / थेर-ऽभिसेय-पवत्तिण गणवच्छीणं च गाणं / / 324 / / नवकप्पेहि विहारो समत्तवत्यूसु अपडिबंधत्तं / उदेसियाझ्याणं चागं तेवठाणाणं / / 325 / / तह बारसह करणं सब्मितरवाहिराण य तवाणं / आयारपंचगस्स य तहेब परिपालणा परमा / / 326 / / मलधारणमवणीए सपणं, बासो य गुरुकुलम्मि सया / निस्संगया य निप्पडिकम्मत्तं जयण सयकालं / / 327 / / उग्गपरीसहसहणं, पमाणउववेयवेससंधरणं / बायालीसेसणदोसवज्जियं पिंडगहणं च // 328 / / 'केसुदरणं दुसह, इंदियगामस्स जं वसीकरणं / पंचण्ह वि अgण्ह वि परिहारो वि य पमायाणं / / 329 / / . उम्मग्गनिवारणयं सम्मग्गट्ठावणं च भव्याणं / एमाई जं विहियं अणुमोए हं तमप्पहियं // 330 / / आयरियाण मुणीण वि एसा सुकडाणुमोयणा भणिया / नवरं पुण नाणत्तं सूरीणं पंचहि पएहिं / / 3 / / सावयकयसुकडाणुमोयणा: अह सावगो वि कोई धनो आराहणं कुणेमाणो / सुकडाणुमोयणेणं अप्पाणं भावए एवं / / 332 / / . धनो हं जेण मए मिच्छत्तं तिषिहमओ वि परिचत्तं / संपत्तं सम्मत्तं अचिंतचिंतामणिसमाणं // 333 / / लखो सिरिणिणधम्मो रम्मो तिजए वि दलियासम्मो / वारियपावपवेसो सणिों सुगुरूण उवएसो / / 334 / / विनाया निस्सेसा जीवाजीवाहतत्तयविसेसा / विहिया य तित्थजत्ता गुरुजत्ता तह य रहजत्ता / / 335 / / कारावियाई चेहयहराई पवराई सिरिणिणिदाणं / मणहरपडिमा तेस य पट्ठिया तिजयपुज्नाओ / / 336 / / विहिया य संघपूया असई पडिलाभिया महामुणिणो / साहम्मियवच्छालं बहुसो वि कर्य तह महलं / / 337 / / सुपसत्यपुत्थयाई, तहा अणेगा प पुत्थियाओ य / मए भराविय विहिया सुयनाणपवा बहुजणाणं / / 338 / / नवबिंबाण पवेसो सपुत्थयाणं कराषिओ बहुसो / तिकालमत्रणाई सिरिजिणबिंबाण विहियाई // 339 / / पडिबोहो मव्वाणं, सुसाहु-सगुरूण पज्जुवासणया / फुलकाण पयाणं पव्वज्जाभिमुहसडाणं / / 340 / / नियऽवचाईयाणं पव्यजाए विसज्जणं तह य / पव्वज्जउच्छवाणं करावणे वरविभूईए // 341 / / राओ जिण्णोद्धारो, पोसहसालाण तह प कारवणं / परिगहपमाणगहणं, विहिया उचियाइदाणविही / / 342 / / महाईण तवाणं करणं सिद्धत-सत्यवृत्ताणं / उज्जावणं च तेसिं तह जिणगिहलक्खपूयाओ / / 343 / / सिरिवठ-तिलय-मठडाइयाणि पडिमाण आभरणगाणि / विहियाई, तहाऽऽजम्मं सामाइयमुभयसंझ पि / / 344 / / पव्वेसु पोसहाई, दौण-अणाहाण दुत्थिपनणाणं / उदरणं, तह धम्मिपनणषच्छलाइकरणाई // 345 / / विहिपं तह साहज्ज भत्तीए में गिलाणसाहणं / धरिया नियहिययम्मी आजम्म देव-गुरुभत्ती / / 346 / / मिच्छत्तहाणाणं विवज्जणं जं मए तिषिहतिविहं / विहियं, सुणियं च तहा वक्खाणं समयसत्तार्ण / / 347 / / रहमओ परोवयारो तहेव विणेयारिहेस विणओ वि / करुणा य पाणिवग्गेसु पक्खवाओ गुणस / / 348 / / एमाई अभं पि प जिणवरचयणाणुसारि नं सुकर्ड / कय कारियमणुमोइयमहयं तं सव्वमणुमोए / / 19 / /
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