Book Title: Agam Chatusharan Prakirnakam
Author(s): Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan
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________________ खण्ड-३/परिशिष्टः-६ 237 तथा 'सुहपवत्तगे सिया,' शुभप्रवर्तकं स्यादनुबन्धेन / / मनुष्य-५२५२॥ 43 शुमनुं प्रवर्तन 22 थाय छे. एवं 'परमसुहसाहगे सिया,' परमसुखसाधकं स्यात्, ५५५था नि३५ ५२मसुमनु स45 थाय छे. पारम्पर्येण निर्वाणावहमित्यर्थः / , यत एवम् ‘अतो 'अप्पडिबंधमेयं'। १२४थी // सूत्रन 16 4थी शुमना अतोऽस्मात कारणात अप्रतिबन्धम् एतत मनुषधा 5252 // भोक्ष सा५४ छ. माथी मा मप्रति - प्रतिबन्धरहितम्, अनिदानमित्यर्थः / / छ - भनिधान छे.. 'असुहभावनिरोहेण सुहभावबीजं ति' अशुभभाव- अशुम अनुबंधन निरो५ 43 शुममापन 54 छ. निरोधेन अशुभानुबन्धनिरोधेनेत्यर्थः, शुभभावबीज-मा प्रभारी वियारीने या सूत्र मिति कृत्वैतत् सूत्रं ‘सुप्पणिहाणं' सुप्रणिधानं शोभनेन प्रणिधानेन सुंदर प्रधानपूर्वक 'सम्मं पढियव्वं सोयव्वं अणुपेहियव्वं ति'। सम्यक् आत्माने आयोथी in gl Hyuqaa योय छे. प्रशान्तात्मना पठितव्यम् अध्येतव्यम् / 'श्रोतव्यम-न्वाख्यानविधिना || समानी (व्यायान) विषयी Airman योग्य छ, अनुप्रेक्षितव्यं परिभावनीयमिति / / સૂત્રોના ભાવોથી આત્માને ભાવિત કરવા યોગ્ય છે. न च 'होउ मे एसा अणुमोयणा सम्मं विहिपुब्विगा' 'भारी मा अनुमोइन सभ्य विधिपूर्व थायो' ... . इत्यादिना निदानपदमेतदिति मन्तव्यम्, स रे पायो 43 मा सूत्र निधन 56 छ. मेन भानपुं. 125 // क्लिष्टबन्धहेतोर्भवानुबन्धिनः संवेगशून्यस्य महर्द्धि-मानदिवा मेवा मोनी द्धिमा पति मध्यqयने 3, BAष्ट धन तु३५, मवानुवन्धि, संवेग-शून्य, भोगगृद्धौ अध्यवसानस्य निदानत्वात् ||DEL पाय छे. . .. अस्य च तल्लक्षणा-योगात् || આ વચનપ્રયોગને નિદાનનું લક્ષણ ઘટતું નથી, અને अनीदृशस्यचानिदानत्वात् / / मापा 2i (निहाननु दक्ष °४५uव्युं तवा २नु) नथीत निधन 135 नथी, मने आरोग्यप्रार्थनादेरपि निदानत्वप्रसङगात् / / तनाj (निहनना सक्षमi °४५uव्युं तवा પ્રકારનું) ન હોય તેને પણ નિદાનપણે સ્વીકારવામાં આવે તો આરોગ્યની પ્રાર્થના વગેરેને પણ નિદાનરૂપે સ્વીકારવાનો પ્રસંગ આવશે. तथा चागमविरोधः- मने ते प्रमाण मानवामा आराम साथे विश५ माशे. आरोग्गबोहिलाभं समाहिवरमुत्तमं दितु / / “माय, allucाम भने उत्तम मेवी श्रेष्ठ समाथि (लोगस्स० ) आपो.” (पोस-5) इत्यादिवचनश्रवणादित्यलं प्रसङ्गेन || ईत्यादि योग सूत्र बोरे सूत्रानुं वयन संमपातुं salथी, (मायनी प्रार्थनाने नानी शेन8.) | प्रसंग 43 सयु.
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