________________ ९-चतुःशरण कुशलानुबन्धी प्रस्तुत प्रकीर्णक ५-अगीतार्थ द्वार, ६-असंविग्न . द्वार, आचार्य वीरभद्र की कृति है / इसमे कुल 63 ७-निर्जरणा द्वार, ८-स्थान द्वार, ९-वसति द्वार, गाथाएँ हैं / उसकी प्रथम गाथा में विषयवस्तु का १०-संस्तार द्वार, ११-द्रव्यदान द्वार, नाम निर्देश इस प्रकार किया गया है - १२-समाधिमान विरेक द्वार, १३-गणनिसर्ग द्वार, (क) सावधयोग की विरति, (ख) उत्कीर्तन, १४-चैत्यवन्दन द्वार, १५-आलोचना द्वार, (ग) गुणियों के प्रति विनय, (घ) क्षति की निन्दा, १६-व्रतोच्चार द्वार, १७-चतुःशरण द्वार, (च) दोषों की चिकित्सा और (छ) गुणाराधना / १८-दुःकृतगर्हा द्वार, १९-सुकृतानुमोदना द्वार, पुनः इनका अलग-अलग निरूपण किया गया 20- जीवक्षामणा द्वार, २१-स्वजनक्षामणा द्वार, है / तत्पश्चात् चतुर्दश स्वप्न का वर्णन, मङ्गल- २२-संघक्षामणा द्वार, २३-जिनवरादि क्षामणा अभिधेय, चतुःशरणगमन, दुष्कृतगर्दा, द्वार, २४-आशातनाप्रतिक्रमण द्वार, सुकृतानुमोदन रूप तीन अधिकार हैं / इसके बाद २५-कायोत्सर्ग द्वार, २६-शक्रस्तव द्वार, अरिहंत, सिद्ध, साधु और केवलिप्रज्ञप्त धर्म इन २७-पापस्थानव्युत्सर्जन द्वार, २८-अनशन द्वार, चार आश्रयों का शरण लेने और जन्म-जन्मान्तर २९-अनुशिष्टि द्वार, ३०-कवच द्वार, में आत्मा ने यदि कोई दुष्कृत आचरण किया हो तो ३१-नमस्कार द्वार और ३२-आराधनाफल द्वार उसकी निन्दा का निरूपण है / अन्त में चतुःशरण इसमें उनतीसवाँ अनुशिष्टि द्वार 17 प्रतिद्वारों में ग्रहण, दुष्कृतगर्हा, सुकृतानुमोदन का फल बताया विभक्त है- . गया है / यह प्रकीर्णक-बाबू धनपति सिंह १-मिथ्यात्व परित्यागअनुशिष्टि प्रतिद्वार, मुर्शिदाबाद, बालाभाई ककलभाई-अहमदाबाद, २-सम्यक्त्वसेवनानुशिष्टि . . आगमोदय समिति, हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला, ३-स्वाध्यायानुशिष्टि महावीर जैन विद्यालय एवं जैनधर्म प्रसारक सभा ४-पञ्चमहाव्रतरक्षानुशिष्टि प्रतिद्वार, से मूल रूप में, तत्त्व विवेचक सभा से गुजराती, ५-मदनिग्रहानुशिष्टि प्रतिद्वार, ६-इन्द्रियदेवचन्द लालभाई फण्ड से संस्कृत, हीरालाल विजयानुशिष्टि हंसराज-जामनगर से गुजराती तथा मनमोहन ७-कषायविजयानुशिष्टि प्रतिद्वार, यशस्मारक से हिन्दी अनुवाद के साथ प्रकाशित हो ८-परषहसहनानुशिष्टि चुका है / ९-उपसर्गसहनानाशिष्टि प्रतिद्वार, १०-प्रमाद १०-प्राचीन आचार्य विरचित अनुशिष्टि प्रतिद्वार, ११-तपश्चरणानुशिष्टि आराधनापताका-इस प्रकीर्णक में कुल 932 प्रतिद्वार, १२-रागादिप्रतिशेषानुशिष्टि प्रतिद्वार, गाथाएँ हैं / सम्पूर्ण ग्रन्थ का वर्ण्यविषय, बत्तीस १३-निदान वर्तनानुशिष्टि प्रतिद्वार, द्वारों में विभक्त है / ये हैं १-संल्लेखना द्वार, १४-कुभावनात्यागानुशिष्टि प्रतिद्वार, 2- परीक्षा द्वार, ३-निर्यामक द्वार, ४-योग्यत्व द्वार, १५-सल्लेखना अतिचार परिहारणानुशिष्टि 36 प्रकीर्णक साहित्य : एक अवलोकन प्रतिद्वार, प्रतिद्वार, प्रतिद्वार, प्रतिद्वार,