________________ प्रतिद्वार, १६-द्वादश शुभ भावनानुशिष्टि प्रतिद्वार तृतीय ममत्व उच्छेदन द्वार के दस प्रतिद्वार हैं और १७-पच्चीस महाव्रत भावना अनुशिष्टि १-आलोचना, २-गुण-दोष, ३-शय्या, प्रतिद्वार / ४-संस्तारक, ५-निगमिक, ६-दर्शन, ७-हानि, यह प्रकीर्णक महावीर जैन विद्यालय, बम्बई से ८-प्रत्याख्यान, ९-क्षामणा, एवं १०-क्षमण / मूल रूप में पइण्णयसुत्ताइं में संगृहीत है। चतुर्थ समाधिलाभ द्वार के आठ प्रतिद्वार हैं ११-आराधना पताका (वीरभद्र)-यह १-अनुशिष्टि, २-सारणा, ३-कवच, ४-समता, प्रकीर्णक आचार्य वीरभद्र रचित है / इसमें 989 ५-ध्यान, ६-लेश्या, ७-आराधना फल और गाथाएँ हैं / इसमें समाधिमरण का साङ्गोपाङ्ग ८-विहान (परित्याग) / वर्णन किया गया है / इस प्रकीर्णक में सविचार भक्त परिज्ञा मरण के वर्णन के समाधिमरण के सविचार और अविचार दो भेद में पश्चात् अविचार भक्त परिज्ञा मरण का निरूपण से सविचार भक्त परिज्ञा मरण का विस्तृत है। विवेचन है / प्रारम्भ में मङ्गल-अभिधेय के बाद इसके १-निरुद्ध, २-निरुद्धतर और पीठिका है / पुनः पाँच प्रकार के मरण का प्ररूपण 3- परमनिरुद्ध - तीन भेद कहे गये हैं / जंघाबल करने के बाद वर्ण्यविषय को चार द्वार के क्षीण हो जाने पर अथवा रोगादि के कारण १-परिकर्मविधिद्वार, . . २-गणसंक्रमणद्वार, कृश शरीर वाले साधु का गुफादि में होने वाला ३-ममत्वउच्छेद द्वार और ४-समाधिलाभ द्वार में मरण निरुद्ध अविचार भक्त परिज्ञामरण है / वर्गीकृत कर पुनः क्रमशः ग्यारह, दस, दस और व्याल, अग्नि, व्याघ्र, शूल, मूर्छा, विशूचिका आठ प्रतिद्वार में विभक्त किया गया है। आदि के कारण अपनी आयु को कम जानकर प्रथम परिकर्मविधिद्वार के ग्यारह प्रतिद्वार हैं - मुनि का गुफादि में मरण निरुद्धतर अविचार भक्त १-अर्ह, २-लिंग, ३-शिक्षा, ४-विनय, परिज्ञा मरण है / भिक्षु की वाणी वातादि के ५-समाधि, . ६-अनियतविहार, ७-परिणाम, कारण अवरुद्ध होने पर आयु को समाप्त जानकर ८-त्याग, ९-निःश्रेणि, १०-भावना, एवं मृत्यु का शीघ्र वरण करना परमनिरुद्ध अविचार . ११-संल्लेखना / ___ भक्त परिज्ञा मरण है / - द्वितीय गणसंक्रमण द्वार के दस प्रतिद्वार हैं- भक्त परिज्ञा मरण के पश्चात् इंगिनीमरण का १-दिशा, २-क्षामणा, ३-अनुशिष्टि, वर्णन किया गया है / इसका प्रतिपादन करते हुए ४-परगणचर्या, ५-सुस्थितगवेषण, ६-उपसम्पदा, कहा गया है कि भक्त परिज्ञा मरण में जो उपक्रम ७-परीक्षा, ८-प्रतिलेखा, ९-आपृच्छना एवं वर्णित हैं, वे ही उपक्रम यथायोग्य इंगिनीमरण में १०-प्रतीच्छा / .. हैं / इसमें देव, मनुष्य आदि कृत उपसर्ग या 8. 'आराहणा-पडाया' पइण्ण्यसुत्ताई भाग-२ गा. 894-903 प्रकीर्णक साहित्य : एक अवलोकन 37