________________ तथा मङ्गल चतुष्क, लोकोत्तम-चतुष्क, शरण- दूसरे में आराधक द्वारा संसार-चक्र में विविध चतुष्क, आलोचना और व्रतोच्चार का निर्देश है। योनियों में भ्रमण करते समय जिन-जिन प्राणियों अन्त में सर्वजीवों की क्षमापणा तथा वेदना सहने को दःख दिया गया उनके प्रति क्षमापना की गयी और अनशन करने का उपदेश है / यह प्रकीर्णक है / विभिन्न भवों के परिजनों के त्याग के प्रति, रागभी पइण्णयसुत्ताई भाग-२ में सङ्कलित है / द्वेषवश हुए एकेन्द्रिय जीवों का वध, मृषावाद १६-नन्दनमुनि आराधित आराधना-इसमें कुल भाषण, परिग्रह, मिथ्यात्व मोह से मूढ़ हो साधु-सेवा, 40 गाथाएँ हैं / यह संस्कृत-भाषा में लिखा गया साधर्मिक वात्सल्य एवं चतुर्विध संघ की अभक्ति के है / इस प्रकीर्णक में नन्दनमुनिकृत दुष्कृतगर्हा, प्रति मिथ्यादुष्कृत किया गया है / ये दोनों प्रकीर्णक सर्वजीव क्षामणा, शुभ भावना, चतुःशरण ग्रहण, पञ्चपरमेष्ठि नमस्कार, अनशन प्रतिपत्ति रूप छ: भी पइण्णयसुत्ताई में सङ्कलित हैं / प्रकार की आराधना का वर्णन किया गया है / इस ____२०-आलोचनाकुलक-इसमें 12 गाथाएँ हैं / प्रकीर्णक का भी एकमात्र संस्करण पइण्णयसत्ताइं इसके कर्ता अज्ञात हैं / इसमें विविध प्रकार के में सङ्कलित है / दुष्कृतों की आलोचना की गयी है तथा आलोचना - १७-आराधना कुलक-यह सभी प्रकीर्णकों में का माहात्म्य बताया गया है / इस ग्रन्थ का भी सबसे छोटा है / इसमें मात्र 8 गाथाएँ हैं / यह प्रकाशन पइण्णयसुत्ताइं में हुआ है / प्रकीर्णक व्रतोच्चार, जीवक्षामणा, पापस्थानत्याग, २१-आत्मविशोधिकुलक-इस प्रकीर्णक में भी दुःकृत निन्दा, सुकृतानुमोदन, चतुःशरणग्रहण, लोक के समस्त प्राणियों के प्रति हुए समस्त प्रकार एकत्व भावना का निर्देश मात्र है / इसके कर्ता के दुष्कृत्यों का निन्दा की गयी है / इसमें आहार अज्ञात है तथा यह भी पइण्णयसुत्ताई में प्रकाशित और समस्त शारीरिक क्रियाओं के त्याग का निर्देश है / अन्त में आलोचना द्वारा आत्म विशुद्धि 18-19 मिथ्यादुष्कृत कुलक-इस शीर्षक से दो का माहात्म्य बताया गया है / इसमें कुल 24 प्रकीर्णक उपलब्ध हैं / दोनों के कर्ता अज्ञात हैं गाथाएँ हैं और इसका भी एकमात्र संस्करण तथा दोनों का प्रारम्भ मङ्गलाचरण से न होकर पइण्णयसुत्ताइं में है / विषय से हैं / एक में 15 तथा दूसरे में 17 गाथाएँ है / प्रथम में आराधक द्वारा चारों गतियों के सभी २२-कवच-यह प्रकीर्णक जिनचन्द्रसूरि की जीवों से अलग-अलग क्षमापना की गयी है। रचना है और प्राचीन आगम आलापकों का इसमें पञ्चपरमेष्ठी की निन्दा, दर्शन-ज्ञान-चारित्र सङ्कलन होने से प्रामाणिक है / इनका अभी तक और सम्यक्त्व की विराधना, चतुर्विध संघ की मुद्रण-प्रकाशन नहीं हुआ है / इसमें 129 गाथाएँ अवमानना, महाव्रतों और अणुव्रतों के प्रति हैं / इसमें पण्डितमरण से सम्बन्धित विषय का स्खलना आदि की निन्दा है / प्रतिपादन किया गया है / 10.. 'देवेन्द्रस्तव' पइण्ण्यसुत्ताई भाग-१ गा. 21-66 प्रकीर्णक साहित्य : एक अवलोकन