________________ किन्नर, किंपुरुष, देवकन्याएं एवं सभी पुद्गल के १३-आराधना पञ्चक-प्रस्तुत प्रकीर्णक में दुःखरूप हो जाने पर भी आराधक विचलित हुए 334 गाथाएँ हैं / यह प्रकीर्णक स्वतन्त्र ग्रन्थ न बिना स्वयं ही आकुंचन, प्रसारण उच्चारादि की होकर उद्योतनसूरि के कुवलयमाला से उद्धृत अंश क्रियाएँ करता है / इसके पश्चात् संक्षेप में है, परन्तु पइण्णयसुत्ताई, भाग-२ में प्रकीर्णक के पादपोपगमनमरण का वर्णन कर अन्त में रूप में सङ्कलित है / इसमें अन्तकृत केवलियों आराधना-फल का प्रतिपादन किया गया है / के नामनिर्देशपूर्वक कर्मक्षपणा का निरूपण किया प्रकाशित संस्करण-यह प्रकीर्णक केवल महावीर गया है / इसके पश्चात् भगवान् महावीर की जैन विद्यालय, बम्बई से (पइण्णय-सुत्ताई भाग-२) प्रेरणा से मणिरथ मुनि एवं दूसरे अन्य कामजेन्द्र मूलरूप में प्रकाशित है / मुनि, वज्रगुप्तमुनि एवं स्वयम्भूदेव मुनि का १२-पर्यन्ताराधना-प्रस्तुत प्रकीर्णक अज्ञात संलेखनाग्रहण ज्ञान, दर्शन, चारित्र और वीर्य की मुनि की कृति है / इसमें कुल 263 गाथाएँ हैं / आराधना, पञ्चमहाव्रत, रक्षा-ममत्व त्याग, इसका अपरनाम आराधनासार भी है / सर्वजीव क्षमापना, दोषप्रतिक्रमण, पण्डितमरण मङ्गलाचरण के पश्चात् विषयवस्तु का वर्णन की प्रेरणा से उसकी आराधना तथा उनके 24 द्वारों में विभक्त कर लिया गया है / ये चौबीस सिद्धिगमन का विस्तार से वर्णन किया गया है / द्वार हैं-१-संल्लेखना, २-स्थान, ३-विकटना, १४-आराधना प्रकरण-इस प्रकीर्णक के कर्ता ४-सम्यक्, ५-अणुव्रत, ६-गुणव्रत, अभयदेवसूरि हैं / इसमें 85 गाथाएँ हैं / यह ग्रन्थ ७-पापस्थान, ८-सागार, ९-चतुःशरणगमन, मरणविधि के छः द्वारों में विभक्त कर रचा गया १०-दुष्कृतगर्दा, ११-सुकृतानुमोदन, १२-विषय, है / छ: द्वार हैं- १-आलोचना द्वार, २-व्रतोच्चार १३-संघादि, १४-चतुर्गति जीवक्षामणा, १५-चैत्य- द्वार, ३-क्षामणाद्वार, ४-अनशनद्वार, नमनोत्सर्ग, १६-अनशन, १७-अनुशिष्टि, ५-शुभभावना द्वार और, ६-नमस्कार भावना १८-भावना, १९-कवच, २०-नमस्कार, द्वार / यह ग्रन्थ पइण्णयसुत्ताइं के भाग-२ में २१-शुभध्यान, २२-निदान, २३-अतिचार और मूलरूप में सङ्कलित है। २४-फलद्वार। १५-जिनशेखर श्रावक प्रति सुलसाश्राविकारइसके प्रकाशित संस्करण हैं- १-बालाभाई चित आराधना-इस प्रकीर्णक में 74 गाथाएँ हैं / ककलभाई-अहमदाबाद (मूल), २-महावीर जैन इसमें प्रत्यासन्न मरण-प्रेरणा अर्थात् अन्त सन्निकट विद्यालय, बम्बई (मूल), ३-विजयसिद्धिसूरि होने पर अनशन की प्रेरणा, अरहंत, सिद्ध, ग्रन्थमाला (मूल), ४-मनमोहन यशमाला, मुम्बई आचार्य, उपाध्याय और साधुओं का स्वरूप (मूल तथा अंग्रेजी, हिन्दी अनुवाद) दो संस्करण / निरूपण एवं उनकी वन्दना, नमस्कार-माहात्म्य 9. 'आराहणा-पडाया' पइण्ण्यसुत्ताई भाग-२ गा. 904-921 38 प्रकीर्णक साहित्य : एक अवलोकन