Book Title: Agam 43 Uttaradhyayan Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 28
________________ आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, ‘उत्तराध्ययन' अध्ययन/सूत्रांक अध्ययन-१०- द्रुमपत्रक सूत्र - २९१ गौतम ! जैसे समय बीतने पर वृक्ष का सूखा हुआ सफेद पत्ता गिर जाता है, उसी प्रकार मनुष्य का जीवन है। अतः गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर । सूत्र - २९२ कुश-डाभ के अग्र भाग पर टिके हुए ओस के बिन्दु की तरह मनुष्य का जीवन क्षणिक है ।अत: गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर । सूत्र-२९३ अल्पकालीन आयुष्य में, विघ्नों से प्रतिहत जीवन में ही पूर्वसंचित कर्मरज को दूर करना है, गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर । सूत्र - २९४ विश्व के सब प्राणियों को चिरकाल में भी मनुष्य भव की प्राप्ति दुर्लभ है । कर्मों का विपाक तीव्र है। इसलिए गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर । सूत्र - २९५-२९९ पृथ्वीकाय में, अप्काय में, तेजस् काय में, वायुकाय में असंख्यात काल तक रहता है । अतः गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत कर । और वनस्पतिकाय में गया हआ जीव उत्कर्षतः दुःख से समाप्त होने वाले अनन्त काल तक रहता है। अतः गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत कर । सूत्र-३००-३०२ द्वीन्द्रिय...त्रीन्द्रिय में...और चतुरिन्द्रिय में गया हआ जीव उत्कर्षतः संख्यात काल तक रहता है । इसलिए गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत कर । सूत्र-३०३ पंचेन्द्रिय काय में गया हआ जीव उत्कर्षतः सात आठ भव तक रहता है । इसलिए गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर। सूत्र-३०४ देव और नरक योनि में गया हुआ जीव उत्कर्षतः एक-एक भव ग्रहण करता है। अतः गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर। सूत्र-३०५ प्रमादबहुल जीव शुभाशुभ कर्मों के कारण संसार में परिभ्रमण करता है । इसलिए गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत कर। सूत्र - ३०६-३१० दुर्लभ मनुष्य जीवन पाकर भी आर्यत्व पाना दुर्लभ है । मनुष्य होकर भी बहुत से लोग दस्यु और म्लेच्छ होते हैं। आर्यत्व की प्राप्ति होने पर भी अविकल पंचेन्द्रियत्व की प्राप्ति दुर्लभ है । बहुत से जीवों को विकलेन्द्रियत्व भी देखा जाता है। अविकल पंचेन्द्रियत्व की प्राप्ति होने पर भी श्रेष्ठ धर्म का श्रवण पुनः दुर्लभ है । कुतीर्थिकों की उपासना मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(उत्तराध्ययन) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 28

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