Book Title: Agam 43 Uttaradhyayan Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 85
________________ आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, 'उत्तराध्ययन' अध्ययन/सूत्रांक सूत्र-१०९५ राग, द्वेष, मोह और अज्ञान जिसके दूर हो गये हैं, उसकी आज्ञा में रुचि रखना, 'आज्ञा रुचि है। सूत्र - १०९६ जो अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य श्रुत का अवगाहन करता हुआ श्रुत से सम्यक्त्व की प्राप्ति करता है, वह 'सूत्ररुचि' जानना। सूत्र- १०९७ जैसे जल में तेल की बूंद फैल जाती है, वैसे ही जो सम्यक्त्व एक पद से अनेक पदों में फैलता है, वह 'बीजरुचि है। सूत्र-१०९८ जिसने ग्यारह अंग, प्रकीर्णक, दृष्टिवाद आदि श्रुतज्ञान अर्थ-सहित प्राप्त किया है, वह अभिगमरुचि' है। सूत्र-१०९९ समग्र प्रमाणों और नयों से जो द्रव्यों के सभी भावों को जानता है, वह विस्ताररुचि' है। सूत्र-११०० दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप, विनय, सत्य, समिति और गुप्ति आदि क्रियाओं में जो भाव से रुचि है, वह 'क्रियारुचि' है। सूत्र-११०१ जो निर्ग्रन्थ-प्रवचन में अकुशल है, साथ ही मिथ्या प्रवचनों से भी अनभिज्ञ है, किन्तु कुदृष्टि का आग्रह न होने के कारण अल्प-बोध से ही जो तत्त्व श्रद्धा वाला है, वह संक्षेपरुचि है। सूत्र-११०२ जिन-कथित अस्तिकाय धर्म में, श्रुत-धर्म में और चारित्र-धर्म में श्रद्धा करता है, वह धर्मरुचि' वाला है। सूत्र - ११०३ परमार्थ को जानना, परमार्थ के तत्वद्रष्टाओं की सेवा करना, व्यापन्नदर्शन और कुदर्शन से दूर रहना, सम्यक्त्व का श्रद्धान् है। सूत्र - ११०४-११०५ चारित्र सम्यक्त्व के बिना नहीं होता है, किन्तु सम्यक्त्व चारित्र के बिना हो सकता है। सम्यक्त्व और चारित्र युगपद्-एक साथ ही होते हैं । चारित्र से पूर्व सम्यक्त्व का होना आवश्यक है। सम्यक्त्व के बिना ज्ञान नहीं होता है, ज्ञान के बिना चारित्र-गुण नहीं होता है । चारित्र-गुण के बिना मोक्ष नहीं होता और मोक्ष के बिना निर्वाण नहीं होता है। सूत्र - ११०६ निःशंका, निष्कांक्षा, निर्विचिकित्सा, अमूढ-दृष्टि उपबंहण, स्थिरीकरण, वात्सल्य और प्रभावना-ये आठ सम्यक्त्व के अंग हैं। सूत्र-११०७-११०८ चारित्र के पाँच प्रकार हैं सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसम्पराय और-पाँचवाँ यथाख्यात चारित्र है, जो सर्वथा कषायरहित होता है । वह छद्मस्थ और केवली-दोनों को होता है। ये चारित्र कर्म के चय को रिक्त करते हैं, अतः इन्हें चारित्र कहते हैं । मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(उत्तराध्ययन) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 35 Page 85

Loading...

Page Navigation
1 ... 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129