Book Title: Agam 43 Uttaradhyayan Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, 'उत्तराध्ययन'
अध्ययन/सूत्रांक भन्ते ! कषाय के प्रत्याख्यान-से जीव को क्या प्राप्त होता है ? कषाय के प्रत्याख्यान से वीतरागभाव को प्राप्त होता है। वीतरागभाव को प्राप्त जीव सुख-दुःख में सम हो जाता है। सूत्र - ११५०
भन्ते ! योग-प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है ? मन, वचन, काय से सम्बन्धित योग-प्रत्याख्यान से अयोगत्व को प्राप्त होता है । अयोगी जीव नए कर्मों का बन्ध नहीं करता है, पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है। सूत्र-११५१
भन्ते ! शरीर प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है ? शरीर के प्रत्याख्यान से जीव सिद्धों के विशिष्ट गुणों को प्राप्त होता है । सिद्धों के विशिष्ट गुणों से सम्पन्न जीव लोकाग्र में पहुँचकर परम सुख को प्राप्त होता है। सूत्र - ११५२
भन्ते! सहाय-प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है ? सहाय-प्रत्याख्यान से जीव एकीभाव को प्राप्त होता है। एकीभाव प्राप्त साधक एकाग्रता भावना करता हुआ विग्रहकारी शब्द, वाक्कलह झगड़ा-टंटा, क्रोधादि कषाय तथा तू, तू, मैं, मैं आदि से मुक्त रहता है । संयम और संवर में व्यापकता प्राप्त कर समाधिसम्पन्न होता है। सूत्र-११५३
भन्ते ! भक्त प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है ? भक्त-प्रत्याख्यान से जीव अनेक प्रकार के सैकडों भवों का, जन्म-मरणों का निरोध करता है। सूत्र - ११५४
भन्ते ! सद्भाव प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है ? सद्भाव प्रत्याख्यान से जीव अनिवृत्ति को प्राप्त होता है । अनिवृत्ति को प्राप्त अनगार केवली के शेष रहे हुए वेदनीय, आयु, नाम और गोत्र-इन चार भवोपनाही कर्मों का क्षय करता है।।
वह सिद्ध होता है, बुद्ध होता है, मुक्त होता है, परिनिर्वाण को प्राप्त होता है, सर्व दुःखों का अन्त करता है सूत्र-११५५
भन्ते ! प्रतिरूपता से जीव को क्या प्राप्त होता है ? प्रतिरूपता से-जिनकल्प जैसे आचार के पालन से जीव उपकरणों की लघुता को प्राप्त होता है । लघुभूत होकर जीव अप्रमत्त, प्रकट लिंगवाला, प्रशस्त लिंगवाला, विशुद्ध सम्यक्त्व से सम्पन्न, सत्त्व और समिति से परिपूर्ण, सर्व प्राण, भूत जीव और सत्त्वों के लिए विश्वसनीय, अल्प प्रतिलेखनवाला, जितेन्द्रिय, विपुलतप और समितियों का सर्वत्र प्रयोग करनेवाला होता है। सूत्र-११५६
भन्ते ! वैयावृत्य से जीव को क्या प्राप्त होता है? वैयावत्य से जीव तीर्थंकर नाम-गोत्र को उपार्जता है। सूत्र - ११५७
भन्ते ! सर्वगुणसंपन्नता से जीव को क्या प्राप्त होता है ? सर्वगुणसंपन्नता से जीव अपुनरावृत्ति को प्राप्त होता है । वह जीव शारीरिक और मानसिक दुःखों का भागी नहीं होता है। सूत्र-११५८
भन्ते ! वीतरागता से जीव को क्या प्राप्त होता है ? वीतरागता से जीव स्नेह और तृष्णा के अनुबन्धनों का विच्छेद करता है। मनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्ध से विरक्त होता है। सूत्र - ११५९
भन्ते ! क्षान्ति से जीव को क्या प्राप्त होता है? क्षान्ति से जीव परीषहों पर विजय प्राप्त करता है। सूत्र - ११६०
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(उत्तराध्ययन) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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