Book Title: Agam 43 Uttaradhyayan Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, उत्तराध्ययन'
अध्ययन/सूत्रांक अध्ययन-३३-कर्मप्रकृति सूत्र-१३५८
मैं अनुपूर्वी के क्रमानुसार आठ कर्मों का वर्णन करूँगा, जिनसे बँधा हआ यह जीव संसार में परिवर्तन करता है। सूत्र - १३५९-१३६०
ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोह, आयुकर्म-नाम-कर्म, गोत्र और अन्तराय संक्षेप से ये आठ कर्म हैं। सूत्र-१३६१
ज्ञानावरण कर्म पाँच प्रकार का है-श्रुत-ज्ञानावरण, आभिनिबोधिक-ज्ञानावरण, अवधि-ज्ञानावरण, मनोज्ञानावरण और केवल-ज्ञानावरण । सूत्र-१३६२-१३६३
निद्रा, प्रचला, निद्रा-निद्रा, प्रचला-प्रचला और पाँचवीं स्त्यानगृद्धि । चक्षु-दर्शनावरण, अचक्षु-दर्शनावरण, अवधि-दर्शनावरण और केवल-दर्शनावरण ये नौ दर्शनावरण कर्म के विकल्प-भेद हैं। सूत्र - १३६४
वेदनीय कर्म के दो भेद हैं-सातावेदनीय और असाता वेदनीय । साता और असातावेदनीय के अनेक भेद हैं सूत्र-१३६५-१३६८
मोहनीय कर्म के भी दो भेद हैं-दर्शन मोहनीय और चारित्र मोहनीय । दर्शनमोहनीय के तीन और चारित्रमोहनीय के दो भेद हैं । सम्यक्त्व, मिथ्यात्व और सम्यक्मिथ्यात्व-ये तीन दर्शन मोहनीय की प्रकृतियाँ हैं । चारित्रमोहनीय के दो भेद हैं-कषाय मोहनीय और नोकषाय मोहनीय । कषाय मोहनीय कर्म के सोलह भेद हैं । नोकषाय मोहनीय कर्मों के सात अथवा नौ भेद हैं। सूत्र - १३६९
आयु कर्म के चार भेद हैं-नैरयिकआयु, तिर्यग्आयु, मनुष्यआयु और देवआयु । सूत्र-१३७०
नाम कर्म के दो भेद हैं-शुभ नाम और अशुभ-नाम । शुभ के अनेक भेद हैं । इसी प्रकार अशुभ के भी। सूत्र-१३७१
गोत्र कर्म के दो भेद हैं-उच्च गोत्र और नीच गोत्र । इन दोनों के आठ-आठ भेद हैं। सूत्र-१३७२
संक्षेप से अन्तराय कर्म के पाँच भेद हैं-दानान्तराय, लाभान्तराय, भोगान्तराय, उपभोगान्तराय और वीर्यान्तराय।
सूत्र- १३७३
ये कर्मों की मूल प्रकृतियाँ और उत्तर प्रकृतियाँ कही गई हैं। इसके आगे उनके प्रदेशाग्र-द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव को सूनो। सूत्र-१३७४-१३७५
एक समय में बद्ध होने वाले सभी कर्मों का कर्मपुदगलरूप द्रव्य अनन्त होता है । वह ग्रन्थिभेद न करनेवाले अनन्त अभव्य जीवों से अनन्त गुण अधिक और सिद्धों के अन्तवे भाग जितना होता है । सभी जीवों के लिए संग्रह-कर्म-पुद्गल छहों दिशाओं में-आत्मा से स्पृष्ट सभी आकाश प्रदेशों में हैं । वे सभी कर्म-पुद्गल बन्ध के समय आत्मा के सभी प्रदेशों के साथ बद्ध होते हैं ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(उत्तराध्ययन) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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