Book Title: Agam 43 Uttaradhyayan Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, ‘उत्तराध्ययन'
अध्ययन/सूत्रांक सूत्र - १३७६-१३७७
__ज्ञानावरण, दर्शनावरण तथा वेदनीय और अन्तराय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति तीस कोटि-कोटि उदधि सदृशसागरोपम की है और जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है। सूत्र-१३७८
मोहनीय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति सत्तर (७०) कोटि-कोटि सागरोपम की है। और जघन्य स्थिति अन्तर्मुहर्त्त की है सूत्र- १३७९
आयु-कर्म की उत्कृष्ट स्थिति तेंतीस सागरोपम की है; और जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है। सूत्र - १३८०
नाम और गोत्र-कर्म की उत्कृष्ट स्थिति बीस कोटि-कोटि सागरोपम की है और जघन्य स्थिति आठ मुहूर्त की है। सूत्र - १३८१-१३८२
सिद्धों के अनन्तवें भाग जितने कर्मों के अनुभाग हैं । सभी अनुभागों का प्रदेश-परिमाण सभी भव्य और अभव्य जीवों से अतिक्रान्त है, अधिक है । इसलिए इन कर्मों के अनुभागों को जानकर बुद्धिमान साधक इनका संवर और क्षय करने का प्रयत्न करे । - ऐसा मैं कहता हूँ।
अध्ययन-३३ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(उत्तराध्ययन) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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