Book Title: Agam 43 Uttaradhyayan Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 112
________________ आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, ‘उत्तराध्ययन' अध्ययन/सूत्रांक अध्ययन-३४-लेश्याध्ययन सूत्र-१३८३-१३८४ मैं अनुपूर्वी के क्रमानुसार लेश्याअध्ययन का निरूपण करूँगा । मुझसे तुम छहों लेश्याओं के अनुभावों-को सुनो । लेश्याओं के नाम, वर्ण, रस, गन्ध, स्पर्श, परिणाम, लक्षण, स्थान, स्थिति, गति और आयुष्य को मुझसे सुनो सूत्र - १३८५ क्रमशः लेश्याओं के नाम इस प्रकार हैं-कृष्ण, नील, कापोत, तेजस्, पद्म और शुक्ल । सूत्र-१३८६-१३९१ कृष्ण लेश्या का वर्ण सजल मेघ, महिष, शृंग, अरिष्टक खंजन, अंजन और नेत्र-तारिका के समान (काला) है । नील लेश्या का वर्ण-नील अशोक वृक्ष, चास पक्षी के पंख और स्निग्ध वैडूर्य मणि के समान (नीला) है । कापोत लेश्या का वर्ण-अलसी के फूल, कोयल के पंख और कबूतर की ग्रीवा के वर्ण के समान (कुछ काला और कुछ लाल-जैसा मिश्रित) है। तेजोलेश्या का वर्ण-हिंगुल, गेरू, उदीयमान तरुण सूर्य, तोते की चोंच, प्रदीप की लौ के समान (लाल) होता है । पद्म लेश्या का वर्ण-हरिताल और हल्दी के खण्ड तथा सण और असन के फूल के समान (पीला) है । शुक्ल लेश्या का वर्ण-शंख, अंकरत्न, कुन्दपुष्प, दुग्ध-धारा, चांदी के हार के समान (श्वेत) है। सूत्र-१३९२-१३९७ कडुवा तूम्बा, नीम तथा कड़वी रोहिणी का रस जितना कड़वा होता है, उससे अनन्त गुण अधिक कड़वा कृष्ण लेश्या का रस है । त्रिकटु और गजपीपल का रस जितना तीखा है, उससे अनन्त गुण अधिक तीखा नील लेश्या का रस है। कच्चे आम और कच्चे कपित्थ का रस जैसे कसैला होता है, उससे अनन्त गुण अधिक कसैला कापोत लेश्या का रस है। पके हुए आम और पके हुए कपित्थ का रस जितना खट-मीठा होता है, उससे अनन्त गुण अधिक खटमीठा तेजोलेश्या का रस है । उत्तम सुरा, फूलों से बने विविध आसव, मधु तथा मैरेयक का रस जितना अम्ल होता है, उससे अनन्त गुण अधिक पद्मलेश्या का रस है। खजूर, मद्वीका, क्षीर, खाँड और शक्कर का रस जितना मिठा होता है उससे अनन्त गुण अधिक मीठा शुक्ललेश्या का रस है । सूत्र-१३९८-१३९९ गाय, कुत्ते और सर्प के मृतक शरीर की जैसे दुर्गन्ध होती है, उससे अनन्त गुण अधिक दुर्गन्ध तीनों अप्रशस्त लेश्याओं की होती है । सुगन्धित पुष्प और पीसे जा रहे सुगन्धित पदार्थों की जैसी गन्ध है, उससे अनन्त गुण अधिक सुगन्ध तीनों प्रशस्त लेश्याओं की है। सूत्र - १४००-१४०१ क्रकच, गाय की जीभ और शाक वृक्ष के पत्रों का स्पर्श जैसे कर्कश होता है, उससे अनन्त गुण कर्कश स्पर्श तीनों अप्रशस्त लेश्याओं का है । बूर, नवनीत, सिरीष के पुष्पों का स्पर्श जैसे कोमल होता है, उससे अनन्त गुण अधिक कोमल स्पर्श तीनों प्रशस्त लेश्याओं का है। सूत्र - १४०२ लेश्याओं के तीन, नौ, सत्ताईस, इक्कासी अथवा दो-सौ तेंतालीस परिणाम होते हैं। सूत्र-१४०३-१४०४ ___जो मनुष्य पाँच आश्रवों में प्रवृत्त है, तीन गुप्तियों में अगुप्त है, षट्काय में अविरत है, तीव्र आरम्भ में संलग्न है, क्षुद्र है, अविवेकी है-निःशंक परिणामवाला है, नृशंस है, अजितेन्द्रिय है-इन सभी योगों से युक्त, वह कृष्णलेश्या में परिणत होता है । मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(उत्तराध्ययन) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 112

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