Book Title: Agam 43 Uttaradhyayan Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र - ४, 'उत्तराध्ययन'
सिद्ध हो सकते हैं ।
सूत्र - १५१९ - १५२०
सिद्ध कहाँ रुकते हैं ? कहाँ प्रतिष्ठित हैं ? शरीर को कहाँ छोड़कर, कहाँ जाकर सिद्ध होते हैं ? सिद्ध अलोक में रुकते हैं। लोक के अग्रभाग में प्रतिष्ठित हैं। मनुष्यलोक में शरीर को छोड़कर लोक के अग्रभाग में जाकर सिद्ध होते हैं।
सूत्र - १५२१-१५२३
सर्वार्थ सिद्ध विमान से बारह योजन ऊपर ईषत् प्राग्भारा पृथ्वी है। वह छत्राकार है। उसकी लम्बाई पैंतालीस लाख योजन है चौड़ाई उतनी ही है। परिधि उससे तिगुनि है मध्यम में वह आठ योजन स्थूल है। क्रमशः पतली होती होती अन्तिम भाग में मक्खी के पंख से भी अधिक पतली हो जाती है।
अध्ययन / सूत्रांक
सूत्र १५२४-१५२५
जिनवरों ने कहा है- वह पृथ्वी अर्जुन स्वर्णमयी है, स्वभाव से निर्मल है और उत्तान छत्राकार है। शंख, अंकरत्न और कुन्द पुष्प के समान श्वेत है, निर्मल और शुभ है। इस सीता नाम की ईषत् प्राग्भारा पृथ्वी से एक योजन ऊपर लोक का अन्त है।
सूत्र - १५२६-१५२७
उस योजन के ऊपर का जो कोस है, उस कोस के छठे भाग में सिद्धों की अवगाहना होती है । भवप्रपंच से मुक्त, महाभाग, परम गति सिद्धि को प्राप्त सिद्ध वहाँ अग्रभाग में स्थित हैं।
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सूत्र - १५२८
अन्तिम भव में जिसकी जितनी ऊंचाई होती है, उससे त्रिभागहीन सिद्धों की अवगाहना होती है। सूत्र - १५२९
एक की अपेक्षा से सिद्ध सादि अनन्त है । और बहुत्व की अपेक्षा से सिद्ध अनादि, अनन्त हैं ।
सूत्र - १५३०
वे अरूप हैं, सघन हैं, ज्ञान-दर्शन से संपन्न हैं । जिसकी कोई उपमा नहीं है, ऐसा अतुल सुख उन्हें प्राप्त है
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सूत्र १५३१
ज्ञान दर्शन से युक्त, संसार के पार पहुँचे हुए, परम गति सिद्धि को प्राप्त वे सभी सिद्ध लोक के एक देश में
स्थित हैं ।
सूत्र - १५३२
संसारी जीव के दो भेद हैं-त्रस और स्थावर उनमें स्थावर तीन प्रकार के हैं।
सूत्र - १५३३
पृथ्वी, जल और वनस्पति- ये तीन प्रकार के स्थावर हैं। अब उनके भेदों को मुझसे सुनो।
सूत्र - १५३४-१५३६
पृथ्वीकाय जीव के दो भेद हैं- सूक्ष्म और बादर । पुनः दोनों के पर्याप्त और अपर्याप्त दो-दो भेद हैं । बादर पर्याप्त पृथ्वीकाय जीव के दो भेद हैं-लक्षण और खर मृदु के सात भेद हैं-कृष्ण, नील, रक्त, पीत, श्वेत, पाण्डु और पनक कठोर पृथ्वी के छत्तीस प्रकार है
सूत्र- १५३७-१५४०
शुद्ध पृथ्वी, शर्करा, बालू, उपल- पत्थर, शिला, लवण, क्षाररूप नौनी मिट्टी, लोहा, ताम्बा, त्रपुक, शीशा, चाँदी, सोना, वज्र, हरिताल, हिंगुल, मैनसिल, सस्यक, अंजन, प्रवाल, अभ्र-पटल, अभ्रबालुक-अभ्रक की पड़तों से
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (उत्तराध्ययन) आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद"
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