Book Title: Agam 43 Uttaradhyayan Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, ‘उत्तराध्ययन'
अध्ययन/सूत्रांक सूत्र-१७२५
जो अनेक शास्त्रों के वेत्ता, आलोचना करनेवालों को समाधि उत्पन्न करनेवाले और गुणग्राही होते हैं, वे इसी कारण आलोचना सुनने में समर्थ होते हैं। सूत्र- १७२६-१७२९
जो कन्दर्प, कौत्कुच्य करता है, तथा शील, स्वभाव, हास्य और विकथा से दूसरों को हँसाता है, वह कांदी भावना का आचरण करता है । जो सुख, घृतादि रस और समृद्धि के लिए मंत्र, योग और भूति कर्म का प्रयोग करता है, वह अभियोगी भावना का आचरण करता है । जो ज्ञान की, केवल-ज्ञानी की, धर्माचार्य की, संघ की तथा साधुओं की निन्दा करता है, वह मायावी किल्बिषिकी भावना का आचरण करता है । जो निरन्तर क्रोध को बढ़ाता रहता है और निमित्त विद्या का प्रयोग करता है, वह आसुरी भावना का आचरण करता है। सूत्र - १७३०
जो शस्त्र से, विषभक्षण से, अथवा अग्नि में जलकर तथा पानी में डूबकर आत्महत्या करता है, जो साध्वाचार से विरुद्ध भाण्ड रखता है, वह अनेक जन्म-मरणों का बन्धन करता है। सूत्र - १७३१
इस प्रकार भव्य-जीवों को अभिप्रेत छत्तीस उत्तराध्ययनों को-उत्तम अध्यायों को प्रकट कर बुद्ध, ज्ञातवंशीय, भगवान् महावीर निर्वाण को प्राप्त हुए। -ऐसा मैं कहता हूँ।
अध्ययन-३६ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
- आगम-४३ (मूल सूत्र-३) 'उत्तराध्ययन' का हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(उत्तराध्ययन) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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