Book Title: Agam 43 Uttaradhyayan Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, 'उत्तराध्ययन'
अध्ययन/सूत्रांक जो पुद्गल गन्ध से परिणत हैं, वे दो प्रकार के हैं-सुरभिगन्ध और दुरभिगन्ध । सूत्र - १४८२
जो पुद्गल रस से परिणत हैं, वे पाँच प्रकार के हैं-तिक्त, कटु, कषाय, अम्ल और मधुर । सूत्र - १४८३-१४८४
जो पुद्गल स्पर्श से परिणत हैं, वे आठ प्रकार के हैं-कर्कश, मृदु, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष । इस प्रकार ये स्पर्श से परिणत पुदगल कहे गये हैं। सूत्र - १४८५
जो पुद्गल संस्थान से परिणत हैं, वे पाँच प्रकार के हैं-परिमण्डल, वृत्त, त्रिकोण, चौकोर और दीर्घ । सूत्र-१४८६-१४९०
जो पुद्गल वर्ण से कृष्ण हैं, या वर्ण से नील है, या रक्त है, या पीत है, या वर्ण से शुक्ल हैं वह गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान से भाज्य है। सूत्र - १४९१-१४९२
जो पुद्गल गन्ध से सुगन्धित है, या दुर्गन्धित है, वह वर्ण, रस, स्पर्श और संस्थान से भाज्य है। सूत्र - १४९३-१४९७
जो पुद्गल रस से तिक्त है, कटु है, कसैला है, खट्टा है या मधुर है वह वर्ण, गन्ध, स्पर्श और संस्थान से भाज्य है। सूत्र - १४९८-१५०५
जो पुद्गल स्पर्श से कर्कश है - मृदु है - गुरु है - लघु है - शीत है - उष्ण है - स्निग्ध है या रूक्ष है वह वर्ण, गन्ध, रस और संस्थान से भाज्य है। सूत्र - १५०६-१५१०
जो पुदगल संस्थान से परिमण्डल है-वृत्त है - त्रिकोण है - चतुष्कोण है या आयत है वह वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श से भाज्य है। सूत्र-१५११
यह संक्षेप से अजीव विभाग का निरूपण किया गया है। अब क्रमशः जीवविभाग का निरूपण करूँगा। सूत्र - १५१२
जीव के दो भेद हैं-संसारी और सिद्ध । सिद्ध अनेक प्रकार के हैं । उनका कथन करता हूँ, सुनो। सूत्र-१५१३
स्त्रीलिंग सिद्ध, पुरुषलिंग सिद्ध, नपुंसकलिंग सिद्ध और स्वलिंग सिद्ध, अन्यलिंग सिद्ध तथा गृहलिंग सिद्ध सूत्र-१५१४
उत्कृष्ट, जघन्य और मध्यम अवगाहना में तथा ऊर्ध्व लोक में, तिर्यक् लोक में एवं समुद्र और अन्य जलाशय में जीव सिद्ध होते हैं। सूत्र - १५१५-१५१८
एक समय में दस नपुंसक, बीस स्त्रियाँ और एक-सौ आठ पुरुष एवं गृहस्थलिंग में चार, अन्यलिंग में दस, स्वलिंग में एक-सौ आठ एवं उत्कृष्ट अवगाहना में दो, जघन्य अवगाहना में चार और मध्यम अवगाहना में एक-सौ आठ एवं ऊर्ध्व लोक में चार, समुद्र में दो, जलाशय में तीन, अधो लोक में वीस, तिर्यक् लोक में एक-सौ आठ जीव
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(उत्तराध्ययन) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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