Book Title: Agam 43 Uttaradhyayan Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, 'उत्तराध्ययन'
अध्ययन/सूत्रांक गाथा-षोडशक में और असंयम में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है। सूत्र - १२३९
ब्रह्मचर्य में, ज्ञातअध्ययनों में, असमाधि-स्थानों में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है। सूत्र- १२४०
इक्कीस शबल दोषों में और बाईस परीषहों में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता
सूत्र- १२४१
सूत्रकृतांग के तेईस अध्ययनों में, रूपाधिक अर्थात् चौबीस देवों में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता वह संसार में नहीं रुकता है। सूत्र - १२४२
पच्चीस भावनाओं में, दशा आदि (दशाश्रुत स्कन्ध, व्यवहार और बृहत्कल्प) के २६ उद्देश्यों में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है। सूत्र - १२४३
२७ अनगार-गुणों में और तथैव प्रकल्प (आचारांग) के २८ अध्ययनों में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है। सूत्र - १२४४
२९ पापश्रुत-प्रसंगों में और ३० मोह-स्थानों में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता
सूत्र - १२४५
सिद्धों के ३१ अतिशायी गुणों में, ३२ योग-संग्रहों में, तैंतीस आशातनाओं में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है। सूत्र-१२४६
- इस प्रकार जो पण्डित भिक्षु इन स्थानों में सतत उपयोग रखता है, वह शीघ्र ही सर्व संसार से मुक्त हो जाता है। -ऐसा मैं कहता हूँ।
अध्ययन-३१ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(उत्तराध्ययन) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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