Book Title: Agam 43 Uttaradhyayan Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 89
________________ आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र - ४, 'उत्तराध्ययन' अध्ययन / सूत्रांक सूत्र- ११२९ भन्ते ! प्रायश्चित्त से जीव को क्या प्राप्त होता है ? प्रायश्चित्त से जीव पापकर्मों को दूर करता है और धर्मसाधना को निरतिचार बनता है। सम्यक् प्रकार से प्रायश्चित्त करने वाला साधक मार्ग और मार्ग फल को निर्मल करता है । आचार और आचारफल की आराधना करता है । सूत्र - ११३० भन्ते ! क्षामणा करने से जीव को क्या प्राप्त होता है ? क्षमापना करने से जीव प्रह्लाद भाव को प्राप्त होता है । प्रह्लाद भाव सम्पन्न साधक सभी प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों के साथ मैत्रीभाव को प्राप्त होता है । मैत्रीभाव को प्राप्त जीव भाव विशुद्धि कर निर्भय होता है। सूत्र - ११३१ भन्ते ! स्वाध्याय से जीव को क्या प्राप्त होता है ? स्वाध्याय से जीव ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय करता है । सूत्र - ११३२ भन्ते ! वाचना से जीव को क्या प्राप्त होता है ? वाचना से जीव कर्मों की निर्जरा करता है, श्रुत ज्ञान की आशातना के दोष से दूर रहता है । तीर्थ धर्म का अवलम्बन करता है - तीर्थ धर्म का अवलम्बन लेकर कर्मों की महानिर्जरा और महापर्यवसान करता है। सूत्र - ११३३ भन्ते ! प्रतिपृच्छना से जीव को क्या प्राप्त होता है ? प्रतिपृच्छना से जीव सूत्र, अर्थ और तदुभय-दोनों से सम्बन्धित काक्षामोहनीय का निराकरण करता है । सूत्र - ११३४ भन्ते ! परावर्तना से जीव को क्या प्राप्त होता है ? परावर्तना से व्यंजन स्थिर होता है और जीव पदानुसारिता आदि व्यंजन-लब्धि को प्राप्त होता है। सूत्र - ११३५ भन्ते! अनुप्रेक्षा से जीव को क्या प्राप्त होता है? अनुप्रेक्षा से जीव आयुष् कर्म छोड़कर शेष ज्ञानावरणादि सात कर्म प्रकृतियों के प्रगाढ़ बन्धन को शिथिल करता है । उनकी दीर्घकालीन स्थिति को अल्पकालीन करता है । उनके तीव्र रसानुभाव को मन्द करता है। बहुकर्म प्रदेशों को अल्प प्रदेशों में परिवर्तित करता है। आयुष् कर्म का बन्ध कदाचित् करता है, कदाचित् नहीं असातवेदनीय कर्म का पुनः पुनः उपचय नहीं करता है। जो संसार अटवी अनादि एवं अनवदग्र है, दीर्घमार्ग युक्त है, जिसके नरकादि गतिरूप चार अन्त हैं, उसे शीघ्र पार करता है। सूत्र- १९३६ I भन्ते ! धर्मकथा से जीव को क्या प्राप्त होता है? धर्मकथा से जीव कर्मों की निर्जरा करता है और प्रवचन की प्रभावना करता है । प्रवचन की प्रभावना करनेवाला जीव भविष्य में शुभ फल देने वाले कर्मों का बन्ध करता है सूत्र - ११३७ भन्ते ! श्रुत की आराधना से जीव को क्या प्राप्त होता है ? श्रुत की आराधना से जीव अज्ञान का क्षय करता है और क्लेश को प्राप्त नहीं होता है। सूत्र- ११३८ भन्ते ! मन को एकाग्रता में संनिवेशन करने से जीव को क्या प्राप्त होता है ? मन को एकाग्रता में स्थापित करने से चित्त का निरोध होता है । सूत्र- ११३९ मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (उत्तराध्ययन) आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद" Page 89

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