Book Title: Agam 43 Uttaradhyayan Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 88
________________ आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, ‘उत्तराध्ययन' अध्ययन/सूत्रांक भन्ते ! आलोचना से जीव को क्या प्राप्त होता है ? आलोचना से मोक्षमार्ग में विघ्न डालनेवाले और अनन्त संसार को बढ़ानेवाले माया, निदान और मिथ्यादर्शन रूप शल्यों को निकाल फेंकता है । ऋजुभाव को प्राप्त होता है । जीव माया-रहित होता है । अतः वह स्त्री-वेद, नपुंसक-वेद का बन्ध नहीं करता है, पूर्वबद्ध की निर्जरा करता है सूत्र - १११९ भन्ते ! निन्दा से जीव को क्या प्राप्त होता है ? निन्दा से पश्चात्ताप प्राप्त होता है । पश्चात्ताप से होने वाली विरक्ति से करण-गुण-श्रेणि प्राप्त होती है । अनगार मोहनीय कर्म को नष्ट करता है। सूत्र-११२० भन्ते ! गर्दा से जीव को क्या प्राप्त होता है ? गर्दा से जीव को अपुरस्कार प्राप्त होता है । अपुरस्कृत होने से वह अप्रशस्त कार्यों से निवृत्त होता है। प्रशस्त कार्यों से युक्त होता है। ऐसा अनगार ज्ञान-दर्शनादि अनन्त गुणों का घात करनेवाले ज्ञानावरणादि कर्मों के पर्यायों का क्षय करता है। सूत्र- ११२१ भन्ते! सामायिक से जीव को क्या प्राप्त होता है ? सामायिक से जीव सावध योगों से-विरति पाता है। सूत्र-११२२ भन्ते! चतुर्विंशति स्तव से जीव को क्या प्राप्त होता है ? चतुर्विंशति स्तव से जीव दर्शन-विशोधि पाता है । सूत्र - ११२३ भन्ते ! वन्दना से जीव को क्या प्राप्त होता है ? वन्दना से जीव नीचगोत्र कर्म का क्षय करता है । उच्च गोत्र का बन्ध करता है । वह अप्रतिहत सौभाग्य को प्राप्त कर सर्वजनप्रिय होता है। उसकी आज्ञा सर्वत्र मानी जाती है। वह जनता से दाक्षिण्य को प्राप्त होता है। सूत्र - ११२४ भन्ते ! प्रतिक्रमण से जीव को क्या प्राप्त होता है ? प्रतिक्रमण से जीव स्वीकृत व्रतों के छिद्रों को बंद करता है । आश्रवों का निरोध करता है, शुद्ध चारित्र का पालन करता है, समिति-गुप्ति रूप आठ प्रवचनमाताओं के आराधन में सतत उपयुक्त रहता है, संयम-योग में अपृथक्त्व होता है और सन्मार्ग में सम्यक् समाधिस्थ होकर विचरण करता है। सूत्र- ११२५ भन्ते ! कायोत्सर्ग से जीव को क्या प्राप्त होता है ? कायोत्सर्ग से जीव अतीत और वर्तमान के प्रायश्चित्तयोग्य अतिचारों का विशोधन करता है। अपने भार को हटा देनेवाले भार-वाहक की तरह निर्वतहृदय हो जाता है और प्रशस्त ध्यान में लीन होकर सुखपूर्वक विचरण करता है। सूत्र- ११२६ भन्ते! प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है? प्रत्याख्यान से जीव आश्रवद्वारों का निरोध करता है। सूत्र-११२७ भन्ते ! स्तवस्ततिमंगल से जीव को क्या प्राप्त होता है ? स्तव-स्तति मंगल से जीव को ज्ञान-दर्शन-चारित्र स्वरूप बोधि का लाभ होता है । ज्ञान-दर्शन-चारित्र स्वरूप बोधि से संपन्न जीव अन्तक्रिया के योग्य अथवा वैमानिक देवों में उत्पन्न होने के योग्य आराधना करता है। सूत्र-११२८ भन्ते ! काल की प्रतिलेखना से जीव को क्या प्राप्त होता है ? काल की प्रतिलेखना से जीव ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय करता है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(उत्तराध्ययन) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 88

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