Book Title: Agam 43 Uttaradhyayan Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
View full book text
________________
आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, 'उत्तराध्ययन
अध्ययन / सूत्रांक
भन्ते ! संयम से जीव को क्या प्राप्त होता है ? संयम से आश्रव के निरोध को प्राप्त होता है ।
सूत्र - ११४०
भन्ते! तप से जीव को क्या प्राप्त होता है ? तप से जीव पूर्व संचित कर्मों का क्षय करके व्यवदान को प्राप्त होता है।
सूत्र - ११४१
भन्ते ! व्यवदान से जीव को क्या प्राप्त होता है ? व्यवदान से जीव को अक्रिया प्राप्त होती है । अक्रिय होने से वह सिद्ध होता है, बुद्ध होता है, मुक्त होता है, परिनिर्वाण को प्राप्त होता है, सब दुःखों का अन्त करता है । सूत्र - ११४२
भन्ते ! वैषयिक सुखों की स्पृहा के निवारण से जीव को क्या प्राप्त होता है ? सुख-शात से विषयों के प्रति अनुत्सुकता होती है । अनुत्सुकता से जीव अनुकम्पा करने वाला, अनुद्भट, शोकरहित होकर चारित्रमोहनीय कर्म का क्षय करता है ।
सूत्र- १९४३
भन्ते ! अप्रतिबद्धता से जीव को क्या प्राप्त होता है ? अप्रतिबद्धता से जीव निस्संग होता है । निस्संग होने से जीव एकाकी होता है, एकाग्रचित्त होता है । दिन-रात सदा सर्वत्र विरक्त और अप्रतिबद्ध होकर विचरण करता है
सूत्र १२४४
भन्ते ! विविक्त शयनासन से जीव को क्या प्राप्त होता है ? विविक्त शयनासन से जीव चारित्र की रक्षा करता है । चारित्र की रक्षा करने वाला विविक्ताहारी दृढ चारित्री, एकान्तप्रिय, मोक्ष भाव से संपन्न जीव आठ प्रकार के कर्मों की ग्रन्थि का निर्जरण करता है ।
-
सूत्र १९४५
भन्ते ! विनिवर्तना से जीव को क्या प्राप्त होता है ? विनिवर्तना से मन और इन्द्रियों को विषयों से अलग रखने की साधना से जीव पाप कर्म न करने के लिए उद्यत रहता है, पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा से कर्मों को निवृत्त करता है । चार अन्तवाले संसार कान्तार को शीघ्र ही पार कर जाता है ।
सूत्र - ११४६
भन्ते ! सम्भोग के प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है ? सम्भोग (एक-दूसरे के साथ सहभोजन आदि के संपर्क) के प्रत्याख्यान से परावलम्बन से निरालम्ब होता है । निरालम्ब होने से उसके सारे प्रयत्न आयतार्थ हो जाते हैं । स्वयं के उपार्जित लाभ से सन्तुष्ट होता है । दूसरों के लाभ का आस्वादन नहीं करता है । उसकी कल्पना, स्पृहा, प्रार्थना, अभिलाषा नहीं करता है । इस प्रकार दूसरी सुख-शय्या को प्राप्त होकर विहार करता है ।
सूत्र - ११४७
भन्ते ! उपधि के प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है ? उपधि प्रत्याख्यान से जीव निर्विघ्न स्वाध्याय प्राप्त होता है । उपधिरहित जीव आकांक्षा से मुक्त होकर उपधि के अभाव में क्लेश को प्राप्त नहीं होता है । सूत्र - ११४८
भन्ते ! आहार के प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है ? आहार के प्रत्याख्यान से जीव जीवन की आशंसा के प्रयत्नों को विच्छिन्न कर देता है । जीवन की कामना के प्रयत्नों को छोड़कर वह आहार के अभाव में भी क्लेश को प्राप्त नहीं होता है।
सूत्र- १९४९
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (उत्तराध्ययन) आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद"
Page 90