Book Title: Agam 43 Uttaradhyayan Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, ‘उत्तराध्ययन'
अध्ययन/सूत्रांक सूत्र - ६४९
पुत्र - साधुचर्या में जीवनपर्यन्त कहीं विश्राम नहीं है । लोहे के भार की तरह साधु के गुणों का वह महान् गुरुतर भार है, जिसे जीवनपर्यन्त वहन करना अत्यन्त कठिन है। सूत्र- ६५०
जैसे आकाश-गंगा का स्रोत एवं प्रतिस्रोत दुस्तर है । सागर को भुजाओं से तैरना दुष्कर है, वैसे ही संयम के सागर को तैरना दुष्कर है। सूत्र-६५१
संयम बालू-रेत के कवल की तरह स्वाद से रहित है, तप का आचरण तलवार की धार पर चलने जैसा दुष्कर है। सूत्र - ६५२
साँप की तरह एकाग्र दृष्टि से चारित्र धर्म में चलना कठिन है । लोहे के जौ चबाना जैसे दुष्कर है, वैसे ही चारित्र का पालन दुष्कर है। सूत्र-६५३
जैसे प्रज्वलित अग्निशिखा को पीना दुष्कर है, वैसे ही युवावस्था में श्रमणधर्म का पालन करना दुष्कर है। सूत्र - ६५४
जैसे वस्त्र के थैला हवा से भरना कठिन है, वैसे ही कायरों के द्वारा श्रमणधर्म का पालन भी कठिन होता
सूत्र-६५५
जैसे मेरुपर्वत को तराजू से तोलना दुष्कर है, वैसे ही निश्चल और निःशंक भाव से श्रमण धर्म का पालन करना दुष्कर है। सूत्र-६५६
जैसे भुजाओं से समुद्र को तैरना कठिन है, वैसे ही अनुपशान्त व्यक्ति के द्वारा संयम के सागर को पार करना दुष्कर है। सूत्र-६५७
पुत्र ! पहले तू मनुष्य-सम्बन्धी शब्द, रूप आदि पाँच प्रकार के भोगों का भोग कर । पश्चात् भुक्तभोगी होकर धर्म का आचरण करना । सूत्र-६५८
मृगापुत्र ने माता-पिता को कहा-आपने जो कहा है, वह ठीक है। किन्तु इस संसार में जिसकी प्यास बुझ चुकी है, उसके लिए कुछ भी दुष्कर नहीं है। सूत्र - ६५९,६६०
मैंने शारीरिक और मानसिक भयंकर वेदनाओं को अनन्त बार सहन किया है । और अनेक बार भयंकर दुःख और भय भी अनुभव किए हैं।
मैंने नरक आदि चार गतिरूप अन्त वाले जरा-मरण रूपी भय के आकर कान्तार में भयंकर जन्म-मरणों को सहा है।
सूत्र-६६१-६६२
जैसे यहाँ अग्नि उष्ण है, उससे अनन्तगुण अधिक दुःखरूप उष्ण वेदना और जैसे यहाँ शीत है, उससे
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(उत्तराध्ययन) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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