Book Title: Agam 43 Uttaradhyayan Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
View full book text
________________
आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, 'उत्तराध्ययन'
अध्ययन/सूत्रांक गया हूँ, और छीला गया हूँ । लुहारों के द्वारा लोहे की भाँति मैं परमाधर्मी असुर कुमारों के द्वारा चपत और मुक्का आदि से अनन्त बार पीटा गया, कूटा गया, खण्ड-खण्ड किया गया और चूर्ण बना दिया गया। सूत्र-६८२
भयंकर आक्रन्द करते हुए भी मुझे कलकलाता गर्म ताँबा, लोहा, रांगा और सीसा पिलाया गया । सूत्र- ६८३-६८४
तुझे टुकड़े-टुकड़े किया हुआ और शूल में पिरो कर पकाया गया मांस प्रिय था-यह याद दिलाकर मुझे मेरे ही शरीर का मांस काटकर और उसे तपा कर अनेक बार खिलाया गया । तुझे सुरा, सीधू, मैरेय और मधु आदि मदिराएँ प्रिय थी- यह याद दिलाकर मुझे जलती हुई चर्बी और खून पिलाया गया। सूत्र-६८५-६८६
____ मैंने नित्य ही भयभीत, संत्रस्त, दुःखित और व्यथित रहते हुए अत्यन्त दुःखपूर्ण वेदना का अनुभव किया । तीव्र, प्रचण्ड, प्रगाढ, घोर, अत्यन्त दुःसह, महाभयंकर और भीष्म वेदनाओं का मैंने नरक में अनुभव किया है। सूत्र-६८७
हे पिता ! मनुष्य-लोक में जैसी वेदनाएँ देखी जाती हैं, उनसे अनन्त गुण अधिक दुःख-वेदनाएँ नरक में हैं सूत्र-६८८
मैंने सभी जन्मों में दुःखरूप वेदना का अनुभव किया है । एक क्षण के अन्तर जितनी भी सुखरूप वेदना (अनुभूति) वहाँ नहीं है। सूत्र-६८९
माता-पिता ने उससे कहा-पुत्र ! अपनी इच्छानुसार तुम भले ही संयम स्वीकार करो । किन्तु विशेष बात यह है कि-श्रामण्य-जीवन में निष्प्रतिकर्मता कष्ट है। सूत्र- ६९०
माता-पिता ! आपने जो कहा वह सत्य है। किन्तु जंगलों में रहनेवाले निरीह पशु-पक्षियों की चिकित्सा कौन करता है? सूत्र - ६९१-६९३
जैसे जंगल में मृग अकेला विचरता है, वैसे ही मैं भी संयम और तप के साथ एकाकी होकर धर्म का आचरण करूँगा। जब महावन में मृग के शरीर में आतंक उत्पन्न हो जाता है, तब वृक्ष के नीचे बैठे हुए उस मृग की कौन चिकित्सा करता है ? कौन उसे औषधि देता है ? कौन उसे सुख की बात पूछता है ? कौन उसे भक्तपान लाकर देता है ? सूत्र- ६९४-६९५
जब वह स्वस्थ हो जाता है, तब स्वयं गोचरभूमि में जाता है । और खाने-पीने के लिए बल्लरों-व गहन तथा जलाशयों को खोजता है । उसमें खाकर-पानी पीकर मृगचर्या करता हुआ वह मृग अपनी मृगचर्या चला जाता
सूत्र - ६९६
रूपादि में अप्रतिबद्ध, संयम के लिए उद्यत भिक्षु स्वतंत्र विहा करता हुआ, मृगचर्या की तरह आचरण कर मोक्ष को गमन करता है। सूत्र-६९७
जैसे मग अकेला अनेक स्थानों में विचरता है, रहता है, सदैव गोचर-चर्या से ही जीवनयापन करता है, वैसे
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(उत्तराध्ययन) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
-
Page 59
Page 59