Book Title: Agam 43 Uttaradhyayan Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 58
________________ आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, ‘उत्तराध्ययन' अध्ययन/सूत्रांक अनन्तगुण अधिक दुःखरूप शीतवेदना मैंने नरक में अनुभव की है। सूत्र-६६३-६६५ मैं नरक की कंदु कुम्भियों में-ऊपर पैर और नीचा सिर करके प्रज्वलित अग्नि में आक्रन्द करता हुआ अनन्त बार पकाया गया हूँ । महाभयंकर दावाग्नि के तुल्य मरु प्रदेश में तथा वज्रवालुका में और कदम्ब वालुका में मैं अनन्त बार जलाया गया हूँ। बन्धु-बान्धवों से रहित असहाय रोता हुआ मैं कन्दुकुम्भी में ऊंचा बाँधा गया तथा करपत्र और क्रकच आदि शस्त्रों से अनन्त बार छेदा गया हूँ।'' सूत्र - ६६६-६६८ अत्यन्त तीखे काँटों से व्याप्त ऊंचे शाल्मलि वृक्ष पर पाश से बाँधकर, इधर-उधर खींचकर मुझे असह्य कष्ट दिया गया । अति भयानक आक्रन्दन करता हआ, मैं पापकर्मा अपने कर्मों के कारण, गन्ने की तरह बड़े-बड़े यन्त्रों में अनन्त बार पीला गया हूँ मैं इधर-उधर भागता और आक्रन्दन करता हआ, काले तथा चितकबरे सूअर और कुत्तों से अनेक बार गिराया गया, फाड़ा गया और छेदा गया । सूत्र- ६६९-६७० पाप कर्मों के कारण मैं नरक में जन्म लेकर अलसीफूलों के समान नीले रंग की तलवारों से, भालों से और लोहदण्डों से छेदा गया, भेदा गया, खण्ड-खण्ड कर दिया गया । समिला से युक्त जूएवाले जलते लौह के रथ में पराधीन मैं जोता गया हूँ, चाबुक और रस्सी से हाँका गया हूँ तथा रोझ की भाँति पीट कर भूमि पर गिराया गया हूँ सूत्र - ६७१-६७२ पापकर्मों से घिरा हुआ पराधीन मैं अग्नि की चिताओं में भैंसे की भाँति जलाया और पकाया गया हूँ । लोहे समान कठोर संडासी जैसी चोंचवाले ढंक एवं गीध पक्षियों द्वारा, मैं रोता-बिलखता हठात् अनन्त बार नोचा गया हूँ सूत्र - ६७३-६७४ प्यास से व्याकुल होकर, दौड़ता हुआ मैं वैतरणी नदी पर पहुँचा । 'जल पीऊंगा'-यह सोच ही रहा था कि छुरे की धार जैसी तीक्ष्ण जलधारा से मैं चीरा गया । गर्मी से संतप्त होकर मैं छाया के लिए असि-पत्र महावन में गया । किन्तु वहाँ ऊपर से गिरते हुए असि-पत्रों से-तलवार के समान तीक्ष्ण पत्तों से अनेक बार छेदा गया । सूत्र-६७५ सब ओर से निराश हुए मेरे शरीर को मुद्गरों, मुसुण्डियों, शूलों और मुसलों से चूर-चूर किया गया । इस प्रकार मैंने अनन्त बार दुःख पाया है। सूत्र - ६७६ पाशों और कूट जालों से विवश बने मृग की भाँति मैं भी अनेक बार छलपूर्वक पकड़ा गया हूँ, बाँधा गया हूँ, रोका गया हूँ और विनष्ट किया गया हूँ। सूत्र - ६७७-६७९ गलों से तथा मगरों को पकड़ने के जालों से मत्स्य की तरह विवश मैं अनन्त बार खींचा गया, फाड़ा गया, पकड़ा गया और मारा गया । बाज पक्षियों, जालों तथा वज्रलेपों के द्वारा पक्षी की भाँति मैं अनन्त बार पकड़ा गया, चिपकाया गया, बाँधा गया और मारा गया । सूत्र - ६८०-६८१ बढ़ई के द्वारा वृक्ष की तरह कुल्हाडी और फरसा आदि से मैं अनन्त बार कूटा गया हूँ, फाड़ा गया हूँ, छेदा मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(उत्तराध्ययन) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 58

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