Book Title: Agam 43 Uttaradhyayan Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, 'उत्तराध्ययन'
अध्ययन/सूत्रांक से रहित हो, ऐसी भूमि में उच्चार आदि का उत्सर्ग करना चाहिए। सूत्र - ९५४
ये पाँच समितियाँ संक्षेप से कही गई हैं। अब यहाँ से क्रमशः तीन गुप्तियाँ सूत्र - ९५५-९५६
मनोगुप्ति के चार प्रकार हैं-सत्या, मृषा, सत्यामृषा और असत्यमृषा है, जो केवल लोकव्यवहार है । यतना-संपन्न यति संरम्भ, समारम्भ और आरम्भ में प्रवृत्त मन का निवर्तन करे । सूत्र-९५७-९५८
वचन गुप्ति के चार प्रकार हैं-सत्या, मृषा, सत्यामृषा और असत्यामृषा । यतना-संपन्न यति संरम्भ, समारम्भ और आरम्भ में प्रवर्तमान वचन का निवर्तन करे । सूत्र-९५९-९६०
खड़े होने में, बैठने में, त्वगवर्तन में, उल्लंघन में, प्रलंघन में, शब्दादि विषयों में, इन्द्रियों के प्रयोग में-संरम्भ में, समारम्भ में और आरम्भ में प्रवृत्त काया का निवर्तन करे । सूत्र- ९६१
ये पाँच समितियाँ चारित्र की प्रवृत्ति के लिए हैं । और तीन गुप्तियाँ सभी अशुभ विषयों से निवृत्ति के लिए
हैं।
सूत्र- ९६२
जो पण्डित मुनि इन प्रवचनमाताओं का सम्यक् आचरण करता है, वह शीघ्र ही सर्व संसार से मुक्त हो जाता है। -ऐसा मैं कहता हूँ।
अध्ययन-२४ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(उत्तराध्ययन) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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