Book Title: Agam 43 Uttaradhyayan Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
View full book text
________________
आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, ‘उत्तराध्ययन'
अध्ययन/सूत्रांक अध्ययन-२६-सामाचारी सूत्र-१००७
सामाचारी सब दुःखों से मुक्त कराने वाली है, जिसका आचरण करके निर्ग्रन्थ संसार सागर को तैर गए हैं। उस सामाचारी का मैं प्रतिपादन करता हूँसूत्र - १००८-१०१०
पहली आवश्यकी, दूसरी नैषेधिकी, तीसरी आपृच्छना, चौथी प्रतिपृच्छना, पाँचवी छन्दना, छट्ठी इच्छाकार, सातवीं मिथ्याकार, आठवीं तथाकार नौवीं अभ्युत्थान और दसवीं उपसंपदा है। इस प्रकार ये दस अंगो वाली साधुओं की सामाचारी प्रतिपादन की गई है। सूत्र-१०११-१०१३
(१) बाहर निकलते समय "आवस्सई' कहना, 'आवश्यकी' सामाचारी है । (२) प्रवेश करते समय 'निस्सिहियं'' कहना 'नैषेधिकी' सामाचारी है । (३) अपने कार्य के लिए गुरु से अनुमति लेना, 'आपृच्छना' सामाचारी है । (४) दूसरों के कार्य के लिए गुरु से अनुमति लेना प्रतिपृच्छना' सामाचारी है।
(५) पूर्वगृहीत द्रव्यों के लिए आमन्त्रित करना, 'छन्दना' सामाचारी है । (६) कार्य करने के लिए दूसरों को उनकी इच्छानुकूल विनम्र निवेदन करना, 'इच्छाकार' सामाचारी है । (७) दोष निवृत्ति के लिए आत्मनिन्दा 'मिथ्याकार' सामाचारी है। (८) गुरुजनों के उपदेश को स्वीकार करना, 'तथाकार' सामाचारी है।
(९) गुरुजनों की पूजा के लिए आसन से उठकर खड़ा होना, 'अभ्युत्थान' सामाचारी है । (१०) प्रयोजन से दूसरे आचार्य के पास रहना, 'उपसम्पदा' सामाचारी है। इस प्रकार दशांग-सामाचारी का निरूपण किया गया
सूत्र-१०१४-२०१६
सूर्योदय होने पर दिन के प्रथम प्रहर के प्रथम चतुर्थ भाग में उपकरणों का प्रतिलेखन कर गुरु को वन्दना कर हाथ जोड़कर पूछे कि-अब मुझे क्या करना चाहिए ? भन्ते ! मैं चाहता हूँ, मुझे आप आज स्वाध्याय में नियुक्त करते हैं, अथवा वैयावृत्य मैं । वैयावृत्य में नियुक्त किए जाने पर ग्लानि से रहित होकर सेवा करे । अथवा सभी दुःखों से मुक्त करने वाले स्वाध्याय में नियुक्त किए जाने पर ग्लानि से रहित होकर स्वाध्याय करे । सूत्र - १०१७-१०१८
विचक्षण भिक्ष दिन के चार भाग करे । उन चारों भागों में स्वाध्याय आदि गुणों की आराधना करे । प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, दूसरे में ध्यान, तीसरे में भिक्षाचरी और चौथे में पुनः स्वाध्याय करे । सूत्र - १०१९-१०२१
आषाढ़ महीने में द्विपदा पौरुषी होती है । पौष महीने में चतुष्पदा और चैत्र एवं आश्वीन महीने में त्रिपदा पौरुषी होती है । सात रात में एक अंगुल, पक्ष में दो अंगुल और एक मास में चार अंगुल की वृद्धि और हानि होती है। आषाढ़, भाद्रपद, कार्तिक, पौष, फाल्गुन और वैशाख के कृष्ण पक्ष में एक-एक अहोरात्रि का क्षय होता है । सूत्र-१०२२
जेष्ठ, आषाढ़ और श्रावण में छह अंगुल, भाद्रपद, आश्वीन और कार्तिक में आठ अंगुल तथा मृगशिर, पौष और माघ-में दस अंगुल और फाल्गुन, चैत्र, वैसाख में आठ अंगुल की वृद्धि करने से प्रतिलेखन का पौरुषी समय होता है। सूत्र-१०२३-१०२४
विचक्षण भिक्षु रात्रि के भी चार भाग करे । उन चारों भागों में उत्तर-गुणों की आराधना करे । प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, दूसरे में ध्यान, तीसरे में नींद और चौथे में पुनः स्वाध्याय करे ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(उत्तराध्ययन) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
Page 80